उत्साहयुक्तता Work with zeal
1
धनी कहाने योग्य है, यदि हो धन उत्साह ।
उसके बिन यदि अन्य धन, हो तो क्या परवाह ॥
2
एक स्वत्व उत्साह है, स्थायी स्वत्व ज़रूर ।
अस्थायी रह अन्य धन, हो जायेंगे दूर ॥
3
रहता जिनके हाथ में, उमंग का स्थिर वित्त ।
‘वित्त गया’ कहते हुए, ना हों अधीर-चित्त ॥
4
जिस उत्साही पुरुष का, अचल रहे उत्साह ।
वित्त चले उसके यहाँ, पूछ-ताछ कर राह ॥
5
जलज-नाल उतनी बड़ी, जितनी जल की थाह ।
नर होता उतना बड़ा, जितना हो उत्साह ॥
6
जो विचार मन में उठें, सब हों उच्च विचार ।
यद्यपि सिद्ध न उच्चता, विफल न वे सुविचार ॥
7
दुर्गति में भी उद्यमी, होते नहीं अधीर ।
घायल भी शर-राशि से, गज रहता है धीर ॥
8
‘हम तो हैं इस जगत में, दानी महा धुरीण’ ।
कर सकते नहिं गर्व यों, जो हैं जोश-विहीन ॥
9
यद्यपि विशालकाय है, तथा तेज़ हैं दांत ।
डरता है गज बाघ से, होने पर आक्रांत ॥
10
सच्ची शक्ति मनुष्य की, है उत्साह अपार ।
उसके बिन नर वृक्ष सम, केवल नर आकार ॥
धनी कहाने योग्य है, यदि हो धन उत्साह ।
उसके बिन यदि अन्य धन, हो तो क्या परवाह ॥
2
एक स्वत्व उत्साह है, स्थायी स्वत्व ज़रूर ।
अस्थायी रह अन्य धन, हो जायेंगे दूर ॥
3
रहता जिनके हाथ में, उमंग का स्थिर वित्त ।
‘वित्त गया’ कहते हुए, ना हों अधीर-चित्त ॥
4
जिस उत्साही पुरुष का, अचल रहे उत्साह ।
वित्त चले उसके यहाँ, पूछ-ताछ कर राह ॥
5
जलज-नाल उतनी बड़ी, जितनी जल की थाह ।
नर होता उतना बड़ा, जितना हो उत्साह ॥
6
जो विचार मन में उठें, सब हों उच्च विचार ।
यद्यपि सिद्ध न उच्चता, विफल न वे सुविचार ॥
7
दुर्गति में भी उद्यमी, होते नहीं अधीर ।
घायल भी शर-राशि से, गज रहता है धीर ॥
8
‘हम तो हैं इस जगत में, दानी महा धुरीण’ ।
कर सकते नहिं गर्व यों, जो हैं जोश-विहीन ॥
9
यद्यपि विशालकाय है, तथा तेज़ हैं दांत ।
डरता है गज बाघ से, होने पर आक्रांत ॥
10
सच्ची शक्ति मनुष्य की, है उत्साह अपार ।
उसके बिन नर वृक्ष सम, केवल नर आकार ॥
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