कुसंग वर्जन Avoid bad company

1
ओछों से डरना रहा, उत्तम जन की बान ।
गले लगाना बन्धु सम, है ओछों की बान ॥


2
मिट्टी गुणानुसार ज्यों, बदले वारि-स्वभाव ।
संगति से त्यों मनुज का, बदले बुद्धि-स्वभाव ॥


3
मनोजन्य है मनुज का, प्राकृत इन्द्रियज्ञान ।
ऐसा यह  यों नाम तो, संग-जन्य है जान ॥


4
मनोजन्य सा दीखता, भले बुरे का ज्ञान ।
संग-जन्य रहता मगर, नर का ऐसा ज्ञान ॥


5
मन की होना शुद्धता, तथा कर्म की शुद्धि ।
दोनों का अवलंब है, संगति की परिशुद्धि ॥


6
पातें सत्सन्तान हैं, जिनका है मन शुद्ध ।
विफल कर्म होता नहीं, जिनका रंग विशुद्ध ॥


7
मन की शुद्धि मनुष्य को, देती है ऐश्वर्य ।
सत्संगति तो फिर उसे, देती सब यश वर्य ॥


8
शुद्ध चित्तवाले स्वतः, रहते साधु महान ।
सत्संगति फिर भी उन्हें, करती शक्ति प्रदान ॥


9
चित्त-शुद्धि परलोक का, देती है आनन्द ।
वही शुद्धि सत्संग से होती और बुलन्द ॥


10
साथी कोई है नहीं, साध- संग से उच्च ।
बढ़ कर कुसंग से नहीं, शत्रु हानिकर तुच्छ ॥

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