मध्यस्थता Be a good Judge
1.
मध्यस्थता यथेष्ट है, यदि हो यह संस्कार ।
शत्रु मित्र औ’ अन्य से, न्यायोचित व्यवहार ॥
2
न्यायनिष्ठ की संपदा, बिना हुए क्षयशील ।
वंश वंश का वह रहे, अवलंबन स्थितिशील ॥
3
तजने से निष्पक्षता, जो धन मिले अनन्त ।
भला, भले ही, वह करे तजना उसे तुरन्त ॥
4
कोई ईमान्दार है, अथवा बेईमान ।
उन उनके अवशेष से, होती यह पहचान ॥
5
संपन्नता विपन्नता, इनका है न अभाव ।
सज्जन का भूषण रहा, न्यायनिष्ठता भाव ॥
6
सर्वनाश मेरा हुआ, यों जाने निर्धार ।
चूक न्याय-पथ यदि हुआ, मन में बुरा विचार ॥
7
न्यायवान धर्मिष्ठ की, निर्धनता अवलोक ।
मानेगा नहिं हीनता, बुद्धिमान का लोक ॥
8
सम रेखा पर हो तुला, ज्यों तोले सामान ।
भूषण महानुभाव का, पक्ष न लेना मान ॥
9
कहना सीधा वचन है, मध्यस्थता ज़रूर ।
दृढ़ता से यदि हो गयी, चित्त-वक्रता दूर ॥
10
यदि रखते पर माल को, अपना माल समान ।
वणिक करे वाणीज्य तो, वही सही तू जान ॥
मध्यस्थता यथेष्ट है, यदि हो यह संस्कार ।
शत्रु मित्र औ’ अन्य से, न्यायोचित व्यवहार ॥
2
न्यायनिष्ठ की संपदा, बिना हुए क्षयशील ।
वंश वंश का वह रहे, अवलंबन स्थितिशील ॥
3
तजने से निष्पक्षता, जो धन मिले अनन्त ।
भला, भले ही, वह करे तजना उसे तुरन्त ॥
4
कोई ईमान्दार है, अथवा बेईमान ।
उन उनके अवशेष से, होती यह पहचान ॥
5
संपन्नता विपन्नता, इनका है न अभाव ।
सज्जन का भूषण रहा, न्यायनिष्ठता भाव ॥
6
सर्वनाश मेरा हुआ, यों जाने निर्धार ।
चूक न्याय-पथ यदि हुआ, मन में बुरा विचार ॥
7
न्यायवान धर्मिष्ठ की, निर्धनता अवलोक ।
मानेगा नहिं हीनता, बुद्धिमान का लोक ॥
8
सम रेखा पर हो तुला, ज्यों तोले सामान ।
भूषण महानुभाव का, पक्ष न लेना मान ॥
9
कहना सीधा वचन है, मध्यस्थता ज़रूर ।
दृढ़ता से यदि हो गयी, चित्त-वक्रता दूर ॥
10
यदि रखते पर माल को, अपना माल समान ।
वणिक करे वाणीज्य तो, वही सही तू जान ॥
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