संकट में अनाकुलता Opportune where obstacle arise
1
जब दुख-संकट आ पड़े, तब करना उल्लास ।
तत्सम कोई ना करे, भिड़ कर उसका नाश ॥
2
जो आवेगा बाढ़ सा, बुद्धिमान को कष्ट ।
मनोधैर्य से सोचते, हो जावे वह नष्ट ॥
3
दुख-संकट जब आ पड़े, दुखी न हो जो लोग ।
दुख-संकट को दुख में, डालेंगे वे लोग ॥
4
ऊबट में भी खींचते, बैल सदृष जो जाय ।
उसपर जो दुख आ पड़े, उस दुख पर दुख आय ॥
5
दुख निरंतर हो रहा, फिर भी धैर्य न जाय ।
ऐसों को यदि दुख हुआ, उस दुख पर दुख आय ॥
6
धन पा कर, आग्रह सहित, जो नहिं करते लोभ ।
धन खो कर क्या खिन्न हो, कभी करेंगे क्षोभ ॥
7
देह दुख का लक्ष्य तो, होती है यों जान ।
क्षुब्ध न होते दुख से, जो हैं पुरुष महान ॥
8
विधिवश होता दुख है, यों जिसको है ज्ञान ।
तथा न सुख की चाह भी, दुखी न हो वह प्राण ॥
9
सुख में सुख की चाह से, जो न करेगा भोग ।
दुःखी होकर दुःख में, वह न करेगा शोक ॥
10
दुख को भी सुख सदृश ही, यदि ले कोई मान ।
तो उसको उपलब्ध हो, रिपु से मानित मान ॥
जब दुख-संकट आ पड़े, तब करना उल्लास ।
तत्सम कोई ना करे, भिड़ कर उसका नाश ॥
2
जो आवेगा बाढ़ सा, बुद्धिमान को कष्ट ।
मनोधैर्य से सोचते, हो जावे वह नष्ट ॥
3
दुख-संकट जब आ पड़े, दुखी न हो जो लोग ।
दुख-संकट को दुख में, डालेंगे वे लोग ॥
4
ऊबट में भी खींचते, बैल सदृष जो जाय ।
उसपर जो दुख आ पड़े, उस दुख पर दुख आय ॥
5
दुख निरंतर हो रहा, फिर भी धैर्य न जाय ।
ऐसों को यदि दुख हुआ, उस दुख पर दुख आय ॥
6
धन पा कर, आग्रह सहित, जो नहिं करते लोभ ।
धन खो कर क्या खिन्न हो, कभी करेंगे क्षोभ ॥
7
देह दुख का लक्ष्य तो, होती है यों जान ।
क्षुब्ध न होते दुख से, जो हैं पुरुष महान ॥
8
विधिवश होता दुख है, यों जिसको है ज्ञान ।
तथा न सुख की चाह भी, दुखी न हो वह प्राण ॥
9
सुख में सुख की चाह से, जो न करेगा भोग ।
दुःखी होकर दुःख में, वह न करेगा शोक ॥
10
दुख को भी सुख सदृश ही, यदि ले कोई मान ।
तो उसको उपलब्ध हो, रिपु से मानित मान ॥
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