वध निशेध Avoid killing of animal
1
धर्म-कृत्य का अर्थ है, प्राणी-वध का त्याग ।
प्राणी-हनन दिलायगा, सर्व-पाप-फल-भाग ॥
2
खाना बाँट क्षुधार्त्त को, पालन कर सब जीव ।
शास्त्रकार मत में यही, उत्तम नीति अतीव ॥
3
प्राणी-हनन निषेध का, अद्वितीय है स्थान ।
तदनन्तर ही श्रेष्ठ है, मिथ्या-वर्जन मान ॥
4
लक्षण क्या उस पंथ का, जिसको कहें सुपंथ ।
जीव-हनन वर्जन करे, जो पथ वही सुपंथ ॥
5
जीवन से भयभीत हो, जो होते हैं संत ।
वध-भय से वध त्याग दे, उनमें वही महंत ॥
6
हाथ उठावेगा नहीं जीवन-भक्षक काल ।
उस जीवन पर, जो रहें, वध-निषेध-व्रत-पाल ॥
7
प्राण-हानि अपनी हुई, तो भी हो निज धर्म ।
अन्यों के प्रिय प्राण का, करें न नाशक कर्म ॥
8
वध-मूलक धन प्राप्ति से, यद्यपि हो अति प्रेय ।
संत महात्मा को वही, धन निकृष्ट है ज्ञेय ॥
9
प्राणी-हत्या की जिन्हें, निकृष्टता का भान ।
उनके मत में वधिक जन, हैं चण्डाल मलान ॥
10
जीवन नीच दरिद्र हो, जिसका रुग्ण शरीर ।
कहते बुथ, उसने किया, प्राण-वियुक्त शरीर ॥
धर्म-कृत्य का अर्थ है, प्राणी-वध का त्याग ।
प्राणी-हनन दिलायगा, सर्व-पाप-फल-भाग ॥
2
खाना बाँट क्षुधार्त्त को, पालन कर सब जीव ।
शास्त्रकार मत में यही, उत्तम नीति अतीव ॥
3
प्राणी-हनन निषेध का, अद्वितीय है स्थान ।
तदनन्तर ही श्रेष्ठ है, मिथ्या-वर्जन मान ॥
4
लक्षण क्या उस पंथ का, जिसको कहें सुपंथ ।
जीव-हनन वर्जन करे, जो पथ वही सुपंथ ॥
5
जीवन से भयभीत हो, जो होते हैं संत ।
वध-भय से वध त्याग दे, उनमें वही महंत ॥
6
हाथ उठावेगा नहीं जीवन-भक्षक काल ।
उस जीवन पर, जो रहें, वध-निषेध-व्रत-पाल ॥
7
प्राण-हानि अपनी हुई, तो भी हो निज धर्म ।
अन्यों के प्रिय प्राण का, करें न नाशक कर्म ॥
8
वध-मूलक धन प्राप्ति से, यद्यपि हो अति प्रेय ।
संत महात्मा को वही, धन निकृष्ट है ज्ञेय ॥
9
प्राणी-हत्या की जिन्हें, निकृष्टता का भान ।
उनके मत में वधिक जन, हैं चण्डाल मलान ॥
10
जीवन नीच दरिद्र हो, जिसका रुग्ण शरीर ।
कहते बुथ, उसने किया, प्राण-वियुक्त शरीर ॥
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