महीश महिमा Who is great king?
1
सैन्य राष्ट्र धन मित्रगण, दुर्ग अमात्य षड़ंग ।
राजाओं में सिंह है, जिसके हों ये संग ॥
2
दानशीलता निडरपन, बुद्धि तथा उत्साह ।
इन चारों से पूर्ण हो, स्वभाव से नरनाह ॥
3
धैर्य तथा अविलंबना, विद्या भी हो साथ ।
ये तीनों भू पाल को, कभी न छोड़ें साथ ॥
4
राजधर्म से च्युत न हो, दूर अधर्म निकाल ।
वीरधर्म से च्युत न हो, मानी वही नृपाल ॥
5
कर उपाय धन-वृद्धि का, अर्जन भी कर खूब ।
रक्षण, फिर विनियोग में, सक्षम जो वह भूप ॥
6
दर्शन जिसके सुलभ हैं, और न वचन कठोर ।
ऐसे नृप के राज्य की, शंसा हो बरजोर ॥
7
जो प्रिय वचयुत दान कर, ढिता रक्षण-भार ।
बनता उसके यश सहित, मनचाहा संसार ॥
8
नीति बरत कर भूप जो, करता है जन-रक्ष ।
प्रजा मानती है उसे, ईश तुल्य प्रत्यक्ष ॥
9
जिस नृप में बच कर्ण कटु, शने का संस्कार ।
उसकी छत्रच्छाँह में, टिकता है संसार ॥
10
प्रजा-सुरक्षण प्रिय वचन, तथा सुशासन दान ।
इन चारों से पूर्ण नृप, महीप-दीप समान ॥
सैन्य राष्ट्र धन मित्रगण, दुर्ग अमात्य षड़ंग ।
राजाओं में सिंह है, जिसके हों ये संग ॥
2
दानशीलता निडरपन, बुद्धि तथा उत्साह ।
इन चारों से पूर्ण हो, स्वभाव से नरनाह ॥
3
धैर्य तथा अविलंबना, विद्या भी हो साथ ।
ये तीनों भू पाल को, कभी न छोड़ें साथ ॥
4
राजधर्म से च्युत न हो, दूर अधर्म निकाल ।
वीरधर्म से च्युत न हो, मानी वही नृपाल ॥
5
कर उपाय धन-वृद्धि का, अर्जन भी कर खूब ।
रक्षण, फिर विनियोग में, सक्षम जो वह भूप ॥
6
दर्शन जिसके सुलभ हैं, और न वचन कठोर ।
ऐसे नृप के राज्य की, शंसा हो बरजोर ॥
7
जो प्रिय वचयुत दान कर, ढिता रक्षण-भार ।
बनता उसके यश सहित, मनचाहा संसार ॥
8
नीति बरत कर भूप जो, करता है जन-रक्ष ।
प्रजा मानती है उसे, ईश तुल्य प्रत्यक्ष ॥
9
जिस नृप में बच कर्ण कटु, शने का संस्कार ।
उसकी छत्रच्छाँह में, टिकता है संसार ॥
10
प्रजा-सुरक्षण प्रिय वचन, तथा सुशासन दान ।
इन चारों से पूर्ण नृप, महीप-दीप समान ॥
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