वित्त साधन विधि Good Finance resource
1
धन जो देता है बना, नगण्य को भी गण्य ।
उसे छोड़ कर मनुज को, गण्य वस्तु नहिं अन्य ॥
2
निर्धन लोगो का सभी, करते हैं अपमान ।
धनवनों का तो सभी, करते हैं सम्मन ॥
3
धनरूपी दीपक अमर, देता हुआ प्रकाश ।
मनचाहा सब देश चल, करता है नम-नाश ॥
4
पाप-मार्ग को छोड़कर, न्याय रीति को जान ।
अर्जित धन है सुखद औ’, करता धर्म प्रदान ॥
5
दया और प्रिय भाव से, प्राप्त नहीं जो वित्त ।
जाने दो उस लाभ को, जमे न उसपर चित्त ॥
6
धन जिसका वारिस नहीं, धन चूँगी से प्राप्त ।
विजित शत्रु का भेंट-धन, धन हैं नृप हित आप्त ॥
7
जन्माता है प्रेम जो, दयारूप शिशु सुष्ट ।
पालित हो धन-धाय से, होता है बह पुष्ट ॥
8
निज धन रखते हाथ में, करना कोई कार्य ।
गिरि पर चढ़ गज-समर का, ईक्षण सदृश विचार्य ॥
9
शत्रु-गर्व को चिरने, तेज शास्त्र जो सिद्ध ।
धन से बढ़ कर है नहीं, सो संग्रह कर वित्त ॥
10
धर्म, काम दोनों सुलभ, मिलते हैं इक साथ ।
न्यायार्जित धन प्रचुर हो, लगता जिसके हाथ ॥
धन जो देता है बना, नगण्य को भी गण्य ।
उसे छोड़ कर मनुज को, गण्य वस्तु नहिं अन्य ॥
2
निर्धन लोगो का सभी, करते हैं अपमान ।
धनवनों का तो सभी, करते हैं सम्मन ॥
3
धनरूपी दीपक अमर, देता हुआ प्रकाश ।
मनचाहा सब देश चल, करता है नम-नाश ॥
4
पाप-मार्ग को छोड़कर, न्याय रीति को जान ।
अर्जित धन है सुखद औ’, करता धर्म प्रदान ॥
5
दया और प्रिय भाव से, प्राप्त नहीं जो वित्त ।
जाने दो उस लाभ को, जमे न उसपर चित्त ॥
6
धन जिसका वारिस नहीं, धन चूँगी से प्राप्त ।
विजित शत्रु का भेंट-धन, धन हैं नृप हित आप्त ॥
7
जन्माता है प्रेम जो, दयारूप शिशु सुष्ट ।
पालित हो धन-धाय से, होता है बह पुष्ट ॥
8
निज धन रखते हाथ में, करना कोई कार्य ।
गिरि पर चढ़ गज-समर का, ईक्षण सदृश विचार्य ॥
9
शत्रु-गर्व को चिरने, तेज शास्त्र जो सिद्ध ।
धन से बढ़ कर है नहीं, सो संग्रह कर वित्त ॥
10
धर्म, काम दोनों सुलभ, मिलते हैं इक साथ ।
न्यायार्जित धन प्रचुर हो, लगता जिसके हाथ ॥
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