अपिशुनता Don't speak behind people

1
नाम न लेगा धर्म का, करे अधर्मिक काम ।
फिर भी अच्छा यदि वही, पाये अपिशुन नाम ॥


2
नास्तिवाद कर धर्म प्रति, करता पाप अखण्ड ।
उससे बदतर पिशुनता, सम्मुख हँस पाखण्ड ॥


3
चुगली खा कर क्या जिया, चापलूस हो साथ ।
भला, मृत्यु हो, तो लगे, शास्त्र- उक्त फल हाथ ॥


4
कोई मूँह पर ही कहे, यद्यपि निर्दय बात ।
कहो पीठ पीछे नहीं, जो न सुचिंतित बात ॥


5
प्रवचन-लीन सुधर्म के, हृदय धर्म से हीन ।
भण्डा इसका फोड़ दे, पैशुन्य ही मलीन ॥


6
परदूषक यदि तू बना, तुझमें हैं जो दोष ।
उनमें चुन सबसे बुरे, वह करता है घोष ॥


7
जो करते नहिं मित्रता, मधुर वचन हँस बोल ।
अलग करावें बन्धु को, परोक्ष में कटु बोल ॥


8
मित्रों के भी दोष का, घोषण जिनका धर्म ।
जाने अन्यों के प्रति, क्या क्या करें कुकर्म ॥


9
क्षमाशीलता धर्म है, यों करके सुविचार ।
क्या ढोती है भूमि भी, चुगलखोर का भार ॥


10
परछिद्रानवेषण सदृश, यदि देखे निज दोष ।
ति अविनाशी जीव का, क्यों हो दुख से शोष ॥

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