लोकोपकारिता Service to mankind

1
उपकारी नहिं चाहते, पाना प्रत्युपकार ।
बादल को बदला भला, क्या देता संसार ॥


2
बहु प्रयत्न से जो जुड़ा, योग्य व्यक्ति के पास ।
लोगों के उपकार हित, है वह सब धन-रास ॥


3
किया भाव निष्काम से, जनोपकार समान ।
स्वर्ग तथा भू लोक में दुष्कर जान ॥


4
ज्ञाता शिष्टाचार का, है मनुष्य सप्राण ॥
मृत लोगों में अन्य की, गिनती होती जान ॥


5
पानी भरा तड़ाग ज्यों, आवे जग का काम ।
महा सुधी की संपदा, है जन-मन-सुख धाम ॥


6
शिष्ट जनों के पास यदि, आश्रित हो संपत्ति ।
ग्राम-मध्य ज्यों वृक्षवर, पावे फल-संपत्ति ॥


7
चूके बिन ज्यों वृक्ष का, दवा बने हर अंग ।
त्यों धन हो यदि वह रहे, उपकारी के संग ॥


8
सामाजिक कर्तव्य का, जिन सज्जन को ज्ञान ।
उपकृति से नहिं चूकते, दारिदवश भी जान ॥


9
उपकारी को है नहीं, दरिद्रता की सोच ।
‘मैं कृतकृत्य नहीं हुआ’ उसे यही संकोच ॥


10
लोकोपकारिता किये, यदि होगा ही नाश ।
अपने को भी बेच कर, क्रय-लायक वह नाश ॥

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