समय का बोध Guidance about time

1
दिन में उल्लू पर विजय, पा लेता है काक ।
नृप जिगीषु को चाहिये, उचित समय की ताक ॥


2
लगना जो है कार्य में, अवसर को पहचान ।
श्री को जाने से जकड़, रखती रस्सी जान ॥


3
है क्या कार्य असाध्य भी, यदि अवसर को जान ।
समिचित साधन के सहित, करता कार्य सुजान ॥


4
चाहे तो भूलोक भी, आ जायेगा हाथ ।
समय समझ कर यदि करे, युक्त स्थान के साथ ॥


5
जिनको निश्चित रूप से, विश्व-विजय की चाह ।
उचित समय की ताक में, वें हैं बेपरवाह ॥


6
रहता है यों सिकुड़ नृप, रखते हुए बिसात ।
ज्यों मेढ़ा पीछे हटे, करने को आघात ॥


7
रूठते न झट प्रगट कर, रिपु-अति से नरनाह ।
पर कुढ़ते हैं वे सुधी, देख समय की राह ॥


8
रिपु को असमय देख कर, सिर पर ढो संभाल ।
सिर के बल गिर वह मिटे, आते अन्तिम काल ॥


  9
दुर्लभ अवसर यदि मिले, उसको खोने पूर्व ।
करना कार्य उसी समय, जो दुष्कर था पूर्व ॥


10
बक सम रहना सिकुड़ कर, जब करना नहिं वार ।
चोंच-मार उसकी यथा, पा कर समय, प्रहार ॥

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