अनित्यता Importance of soul who is remain forever ...
1
जो है अनित्य वस्तुएँ, नित्य वस्तु सम भाव ।
अल्पबुद्धिवश जो रहा, है यह नीच स्वभाव ॥
2
रंग-भूमि में ज्यो जमे, दर्शक गण की भीड़ ।
जुड़े प्रचुर संपत्ति त्यों, छँटे यथा वह भीड़ ॥
3
धन की प्रकृति अनित्य है, यदि पावे ऐश्वर्य ।
तो करना तत्काल ही, नित्य धर्म सब वर्य ॥
4
काल-मान सम भासता, दिन है आरी-दांत ।
सोचो तो वह आयु को, चीर रहा दुर्दान्त ॥
5
जीभ बंद हो, हिचकियाँ लगने से ही पूर्व ।
चटपट करना चाहिये, जो है कर्म अपूर्व ॥
6
कल जो था, बस, आज तो, प्राप्त किया पंचत्व ।
पाया है संसार ने, ऐसा बड़ा महत्व ॥
7
अगले क्षण क्या जी रहें, इसका है नहिं बोध ।
चिंतन कोटिन, अनगिनत, करते रहें अबोध ॥
8
अंडा फूट हुआ अलग, तो पंछी उड़ जाय ।
वैसा देही-देह का, नाता जाना जाय ॥
9
निद्रा सम ही जानिये, होता है देहान्त ।
जगना सम है जनन फिर, निद्रा के उपरान्त ॥
10
आत्मा का क्या है नहीं, कोई स्थायी धाम ।
सो तो रहती देह में, भाड़े का सा धाम ॥
जो है अनित्य वस्तुएँ, नित्य वस्तु सम भाव ।
अल्पबुद्धिवश जो रहा, है यह नीच स्वभाव ॥
2
रंग-भूमि में ज्यो जमे, दर्शक गण की भीड़ ।
जुड़े प्रचुर संपत्ति त्यों, छँटे यथा वह भीड़ ॥
3
धन की प्रकृति अनित्य है, यदि पावे ऐश्वर्य ।
तो करना तत्काल ही, नित्य धर्म सब वर्य ॥
4
काल-मान सम भासता, दिन है आरी-दांत ।
सोचो तो वह आयु को, चीर रहा दुर्दान्त ॥
5
जीभ बंद हो, हिचकियाँ लगने से ही पूर्व ।
चटपट करना चाहिये, जो है कर्म अपूर्व ॥
6
कल जो था, बस, आज तो, प्राप्त किया पंचत्व ।
पाया है संसार ने, ऐसा बड़ा महत्व ॥
7
अगले क्षण क्या जी रहें, इसका है नहिं बोध ।
चिंतन कोटिन, अनगिनत, करते रहें अबोध ॥
8
अंडा फूट हुआ अलग, तो पंछी उड़ जाय ।
वैसा देही-देह का, नाता जाना जाय ॥
9
निद्रा सम ही जानिये, होता है देहान्त ।
जगना सम है जनन फिर, निद्रा के उपरान्त ॥
10
आत्मा का क्या है नहीं, कोई स्थायी धाम ।
सो तो रहती देह में, भाड़े का सा धाम ॥
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