दुर्ग Importance of fort
1
आक्रामक को दुर्ग है, साधन महत्वपूर्ण ।
शरणार्थी-रक्षक वही, जो रिपु-भय से चूर्ण ॥
2
मणि सम जल, मरु भूमि औ’, जंगल घना पहाड़ ।
कहलाता है दुर्ग वह, जब हो इनसे आड़ ॥
3
उँचा, चौड़ा और दृढ़, अगम्य भी अत्यंत ।
चारों गुणयुत दुर्ग है, यों कहते हैं ग्रन्थ ॥
4
अति विस्तृत होते हुए, रक्षणीय थल तंग ।
दुर्ग वही जो शत्रु का, करता नष्ट उमंग ॥
5
जो रहता दुर्जेय है, रखता यथेष्ट अन्न ।
अंतरस्थ टिकते सुलभ, दुर्ग वही संपन्न ॥
6
कहलाता है दुर्ग वह, जो रख सभी पदार्थ ।
देता संकट काल में, योग्य वीर रक्षार्थ ॥
7
पिल पड़ कर या घेर कर, या करके छलछिद्र ।
जिसको हथिया ना सके, है वह दुर्ग विचित्र ॥
8
दुर्ग वही यदि चतुर रिपु, घेरा डालें घोर ।
अंतरस्थ डट कर लडें, पावें जय बरज़ोर ॥
9
शत्रु-नाश हो युद्ध में, ऐसे शस्त्र प्रयोग ।
करने के साधन जहाँ, है गढ़ वही अमोघ ॥
10
गढ़-रक्षक रण-कार्य में, यदि हैं नहीं समर्थ ।
अत्युत्तम गढ़ क्यों न हो, होता है वह व्यर्थ ॥
आक्रामक को दुर्ग है, साधन महत्वपूर्ण ।
शरणार्थी-रक्षक वही, जो रिपु-भय से चूर्ण ॥
2
मणि सम जल, मरु भूमि औ’, जंगल घना पहाड़ ।
कहलाता है दुर्ग वह, जब हो इनसे आड़ ॥
3
उँचा, चौड़ा और दृढ़, अगम्य भी अत्यंत ।
चारों गुणयुत दुर्ग है, यों कहते हैं ग्रन्थ ॥
4
अति विस्तृत होते हुए, रक्षणीय थल तंग ।
दुर्ग वही जो शत्रु का, करता नष्ट उमंग ॥
5
जो रहता दुर्जेय है, रखता यथेष्ट अन्न ।
अंतरस्थ टिकते सुलभ, दुर्ग वही संपन्न ॥
6
कहलाता है दुर्ग वह, जो रख सभी पदार्थ ।
देता संकट काल में, योग्य वीर रक्षार्थ ॥
7
पिल पड़ कर या घेर कर, या करके छलछिद्र ।
जिसको हथिया ना सके, है वह दुर्ग विचित्र ॥
8
दुर्ग वही यदि चतुर रिपु, घेरा डालें घोर ।
अंतरस्थ डट कर लडें, पावें जय बरज़ोर ॥
9
शत्रु-नाश हो युद्ध में, ऐसे शस्त्र प्रयोग ।
करने के साधन जहाँ, है गढ़ वही अमोघ ॥
10
गढ़-रक्षक रण-कार्य में, यदि हैं नहीं समर्थ ।
अत्युत्तम गढ़ क्यों न हो, होता है वह व्यर्थ ॥
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