दोष निवारण Solve Impurities
1
काम क्रोध मद दोष से, जो होते हैं मुक्त ।
उनकी जो बढ़ती हुई, होती महिमा-युक्त ॥
2
हाथ खींचना दान से, रखना मिथ्या मान ।
नृप का अति दाक्षिण्य भी, मानो दोष अमान ॥
3
निन्दा का डर है जोन्हें, तिलभर निज अपराध ।
होता तो बस ताड़ सम, मानें उसे अगाध ॥
4
बचकर रहना दोष से, लक्ष्य मान अत्यंत ।
परम शत्रु है दोष ही, जो कर देगा अंत ॥
5
दोष उपस्थिति पूर्व ही, किया न जीवन रक्ष ।
तो वह मिटता है यथा, भूसा अग्नि समक्ष ॥
6
दोष-मुक्त कर आपको, बाद पराया दाष ।
जो देखे उस भूप में, हो सकता क्या दोष ॥
7
जो धन में आसक्त है, बिना किये कर्तव्य ।
जमता उसके पास जो, व्यर्थ जाय वह द्रव्य ॥
8
धनासक्ति जो लोभ है, वह है दोष विशेश |
अन्तर्गत उनके नहीं, जितने दोष अशेष ॥
9
श्रेष्ठ समझ कर आपको, कभी न कर अभिमान ।
चाह न हो उस कर्म की, जो न करे कल्याण ॥
10
भोगेगा यदि गुप्त रख, मनचाहा सब काम ।
रिपुओं का षड्यंत्र तब, हो जावे बेकाम ॥
काम क्रोध मद दोष से, जो होते हैं मुक्त ।
उनकी जो बढ़ती हुई, होती महिमा-युक्त ॥
2
हाथ खींचना दान से, रखना मिथ्या मान ।
नृप का अति दाक्षिण्य भी, मानो दोष अमान ॥
3
निन्दा का डर है जोन्हें, तिलभर निज अपराध ।
होता तो बस ताड़ सम, मानें उसे अगाध ॥
4
बचकर रहना दोष से, लक्ष्य मान अत्यंत ।
परम शत्रु है दोष ही, जो कर देगा अंत ॥
5
दोष उपस्थिति पूर्व ही, किया न जीवन रक्ष ।
तो वह मिटता है यथा, भूसा अग्नि समक्ष ॥
6
दोष-मुक्त कर आपको, बाद पराया दाष ।
जो देखे उस भूप में, हो सकता क्या दोष ॥
7
जो धन में आसक्त है, बिना किये कर्तव्य ।
जमता उसके पास जो, व्यर्थ जाय वह द्रव्य ॥
8
धनासक्ति जो लोभ है, वह है दोष विशेश |
अन्तर्गत उनके नहीं, जितने दोष अशेष ॥
9
श्रेष्ठ समझ कर आपको, कभी न कर अभिमान ।
चाह न हो उस कर्म की, जो न करे कल्याण ॥
10
भोगेगा यदि गुप्त रख, मनचाहा सब काम ।
रिपुओं का षड्यंत्र तब, हो जावे बेकाम ॥
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