मैत्री की परख Examine before making friendship
1
जाँचे बिन मैत्री सदृश, हानि नहीं है अन्य ।
मित्र बना तो छूट नहीं, जिसमें वह सौजन्य ॥
2
परख परख कर जो नहीं, किया गया सौहार्द ।
मरण दिलाता अन्त में, यों, करता वह आर्त ॥
3
गुण को कुल को दोष को, जितने बन्धु अनल्प ।
उन सब को भी परख कर, कर मैत्री का कल्प ॥
4
जो लज्जित बदनाम से, रहते हैं कुलवान ।
कर लो उनकी मित्रता, कर भी मूल्य-प्रदान ॥
5
झिड़की दे कर या रुला, समझावे व्यवहार ।
ऐसे समर्थ को परख, मैत्री कर स्वीकार ॥
6
होने पर भी विपद के, बड़ा लाभ है एक ।
मित्र-खेत सब मापता, मान-दंड वह एक ॥
7
मूर्खों के सौहार्द से, बच कर तजना साफ़ ।
इसको ही नर के लिये, कहा गया है लाभ ॥
8
ऐसे कर्म न सोचिये, जिनसे घटे उमंग ।
मित्र न हो जो दुख में, छोड़ जायगा संग ॥
9
विपद समय जो बन्धु जन, साथ छोड़ दें आप ।
मरण समय भी वह स्मरण, दिल को देगा ताप ॥
10
निर्मल चरित्रवान की, मैत्री लेना जोड़ ।
कुछ दे सही अयोग्य की, मैत्री देना छोड़ ॥
जाँचे बिन मैत्री सदृश, हानि नहीं है अन्य ।
मित्र बना तो छूट नहीं, जिसमें वह सौजन्य ॥
2
परख परख कर जो नहीं, किया गया सौहार्द ।
मरण दिलाता अन्त में, यों, करता वह आर्त ॥
3
गुण को कुल को दोष को, जितने बन्धु अनल्प ।
उन सब को भी परख कर, कर मैत्री का कल्प ॥
4
जो लज्जित बदनाम से, रहते हैं कुलवान ।
कर लो उनकी मित्रता, कर भी मूल्य-प्रदान ॥
5
झिड़की दे कर या रुला, समझावे व्यवहार ।
ऐसे समर्थ को परख, मैत्री कर स्वीकार ॥
6
होने पर भी विपद के, बड़ा लाभ है एक ।
मित्र-खेत सब मापता, मान-दंड वह एक ॥
7
मूर्खों के सौहार्द से, बच कर तजना साफ़ ।
इसको ही नर के लिये, कहा गया है लाभ ॥
8
ऐसे कर्म न सोचिये, जिनसे घटे उमंग ।
मित्र न हो जो दुख में, छोड़ जायगा संग ॥
9
विपद समय जो बन्धु जन, साथ छोड़ दें आप ।
मरण समय भी वह स्मरण, दिल को देगा ताप ॥
10
निर्मल चरित्रवान की, मैत्री लेना जोड़ ।
कुछ दे सही अयोग्य की, मैत्री देना छोड़ ॥
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