भावज्ञता Good emotional person
1
बिना कहे जो जान ले, मुख-मुद्रा से भाव ।
सदा रहा वह भूमि का, भूषण महानुभाव ॥
2
बिना किसी संदेह के, हृदयस्थित सब बात ।
जो जाने मानो उसे, देव तुल्य साक्षात ॥
3
मनोभाव मुख-भाव से, जो जानता निहार ।
अंगों में कुछ भी दिला, करो उसे स्वीकार ॥
4
बिना कहे भावज्ञ हैं, उनके सम भी लोग ।
आकृति में तो हैं मगर, रहें भिन्न वे लोग ॥
5
यदि नहिं जाना भाव को, मुख-मुद्रा अवलोक ।
अंगों में से आँख का, क्या होगा उपयोग ॥
6
बिम्बित करता स्फटिक ज्यों, निकट वस्तु का रंग ।
मन के अतिशय भाव को, मुख करता बहिरंग ॥
7
मुख से बढ़ कर बोधयुत, है क्या वस्तु विशेष ।
पहले वह बिम्बित करे, प्रसन्नता या द्वेष ॥
8
बीती समझे देखकर, यदि ऐसा नर प्राप्त ।
अभिमुख उसके हो खड़े, रहना है पर्याप्त ॥
9
बतलायेंगे नेत्र ही, शत्रु-मित्र का भाव ।
अगर मिलें जो जानते, दृग का भिन्न स्वभाव ॥
10
जो कहते हैं, ‘हम रहे’, सूक्ष्म बुद्धि से धन्य ।
मान-दण्ड उनका रहा, केवल नेत्र, न अन्य ॥
बिना कहे जो जान ले, मुख-मुद्रा से भाव ।
सदा रहा वह भूमि का, भूषण महानुभाव ॥
2
बिना किसी संदेह के, हृदयस्थित सब बात ।
जो जाने मानो उसे, देव तुल्य साक्षात ॥
3
मनोभाव मुख-भाव से, जो जानता निहार ।
अंगों में कुछ भी दिला, करो उसे स्वीकार ॥
4
बिना कहे भावज्ञ हैं, उनके सम भी लोग ।
आकृति में तो हैं मगर, रहें भिन्न वे लोग ॥
5
यदि नहिं जाना भाव को, मुख-मुद्रा अवलोक ।
अंगों में से आँख का, क्या होगा उपयोग ॥
6
बिम्बित करता स्फटिक ज्यों, निकट वस्तु का रंग ।
मन के अतिशय भाव को, मुख करता बहिरंग ॥
7
मुख से बढ़ कर बोधयुत, है क्या वस्तु विशेष ।
पहले वह बिम्बित करे, प्रसन्नता या द्वेष ॥
8
बीती समझे देखकर, यदि ऐसा नर प्राप्त ।
अभिमुख उसके हो खड़े, रहना है पर्याप्त ॥
9
बतलायेंगे नेत्र ही, शत्रु-मित्र का भाव ।
अगर मिलें जो जानते, दृग का भिन्न स्वभाव ॥
10
जो कहते हैं, ‘हम रहे’, सूक्ष्म बुद्धि से धन्य ।
मान-दण्ड उनका रहा, केवल नेत्र, न अन्य ॥
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