क्रूर शासन Cruel Governance
1
हत्यारे से भी अधिक, वह राजा है क्रूर ।
जो जन को हैरान कर, करे पाप भरपूर ॥
2
भाला ले कर हो खड़े, डाकू की ज्यों माँग ।
राजदण्डयुत की रही, त्यों भिक्षा की माँग ॥
3
दिन दिन नीति विचार कर, नृप न करे यदि राज ।
ह्रासोन्मुख होता रहे, दिन दिन उसका राज ॥
4
नीतिहीन शासन करे, बिन सोचे नरनाथ ।
तो वह प्रजा व वित्त को, खो बैठे इक साथ ॥
5
उतपीड़ित जन रो पड़े, जब वेदना अपार ।
श्री का नाशक शास्त्र है, क्या न नेत्र-जल-धार ॥
6
नीतिपूर्ण शासन रखे, नृप का वश चिरकाल ।
नीति न हो तो, भूप का, यश न रहे सब काल ॥
7
अनावृष्टि से दुःख जो, पाती भूमि अतीव ।
दयावृष्टि बिन भूप की, पाते हैं सब जिव ॥
8
अति दुःखद है सधनता, रहने से धनहीन ।
यदि अन्यायी राज के, रहना पड़े अधीन ॥
9
यदि राजा शासन करे, राजधर्म से चूक ।
पानी बरसेगा नहीं, ऋतु में बादल चूक ॥
10
षटकर्मी को स्मृति नहीं, दूध न देगी गाय ।
यदि जन-रक्षक भूप से, रक्षा की नहिं जाय ॥
हत्यारे से भी अधिक, वह राजा है क्रूर ।
जो जन को हैरान कर, करे पाप भरपूर ॥
2
भाला ले कर हो खड़े, डाकू की ज्यों माँग ।
राजदण्डयुत की रही, त्यों भिक्षा की माँग ॥
3
दिन दिन नीति विचार कर, नृप न करे यदि राज ।
ह्रासोन्मुख होता रहे, दिन दिन उसका राज ॥
4
नीतिहीन शासन करे, बिन सोचे नरनाथ ।
तो वह प्रजा व वित्त को, खो बैठे इक साथ ॥
5
उतपीड़ित जन रो पड़े, जब वेदना अपार ।
श्री का नाशक शास्त्र है, क्या न नेत्र-जल-धार ॥
6
नीतिपूर्ण शासन रखे, नृप का वश चिरकाल ।
नीति न हो तो, भूप का, यश न रहे सब काल ॥
7
अनावृष्टि से दुःख जो, पाती भूमि अतीव ।
दयावृष्टि बिन भूप की, पाते हैं सब जिव ॥
8
अति दुःखद है सधनता, रहने से धनहीन ।
यदि अन्यायी राज के, रहना पड़े अधीन ॥
9
यदि राजा शासन करे, राजधर्म से चूक ।
पानी बरसेगा नहीं, ऋतु में बादल चूक ॥
10
षटकर्मी को स्मृति नहीं, दूध न देगी गाय ।
यदि जन-रक्षक भूप से, रक्षा की नहिं जाय ॥
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