राजा से योग्य व्यवहार Good Manner with King (Superior)
1
दूर न पास न रह यथा, तापों उसी प्रकार ।
भाव-बदलते भूप से, करना है व्यवहार ॥
2
राजा को जो प्रिय रहें, उनकी हो नहिं चाह ।
उससे स्थायी संपदा, दिलायगा नरनाह ॥
3
यदि बचना है तो बचो, दोषों से विकराल ।
समाधान सभव नहीं, शक करते नरपाल ॥
4
कानाफूसी साथ ही, हँसी अन्य के साथ ।
महाराज के साथ में, छोड़ो इनका साथ ॥
5
छिपे सुनो मत भेद को, पूछो मत 'क्या बात' ।
प्रकट करे यदि नृप स्वयं, तो सुन लो वह बात ॥
6
भाव समझ समयज्ञ हो, छोड़ घृणित सब बात ।
नृप-मनचाहा ढंग से, कह आवश्यक बात ॥
7
नृप से वांछित बात कह, मगर निरर्थक बात ।
पूछें तो भी बिन कहे, सदा त्याग वह बात ॥
8
‘छोटे हैं, ये बन्धु हैं’, यों नहिं कर अपमान ।
किया जाय नरपाल का, देव तुल्य सम्मान ॥
9
‘नृप के प्रिय हम बन गये’, ऐसा कर सुविचार ।
जो हैं निश्चल बुद्धि के, करें न अप्रिय कार ॥
10
‘चिरपरिचित हैं’, यों समझ, नृप से दुर्व्यवहार ।
करने का अधिकार तो, करता हानि अपार ॥
दूर न पास न रह यथा, तापों उसी प्रकार ।
भाव-बदलते भूप से, करना है व्यवहार ॥
2
राजा को जो प्रिय रहें, उनकी हो नहिं चाह ।
उससे स्थायी संपदा, दिलायगा नरनाह ॥
3
यदि बचना है तो बचो, दोषों से विकराल ।
समाधान सभव नहीं, शक करते नरपाल ॥
4
कानाफूसी साथ ही, हँसी अन्य के साथ ।
महाराज के साथ में, छोड़ो इनका साथ ॥
5
छिपे सुनो मत भेद को, पूछो मत 'क्या बात' ।
प्रकट करे यदि नृप स्वयं, तो सुन लो वह बात ॥
6
भाव समझ समयज्ञ हो, छोड़ घृणित सब बात ।
नृप-मनचाहा ढंग से, कह आवश्यक बात ॥
7
नृप से वांछित बात कह, मगर निरर्थक बात ।
पूछें तो भी बिन कहे, सदा त्याग वह बात ॥
8
‘छोटे हैं, ये बन्धु हैं’, यों नहिं कर अपमान ।
किया जाय नरपाल का, देव तुल्य सम्मान ॥
9
‘नृप के प्रिय हम बन गये’, ऐसा कर सुविचार ।
जो हैं निश्चल बुद्धि के, करें न अप्रिय कार ॥
10
‘चिरपरिचित हैं’, यों समझ, नृप से दुर्व्यवहार ।
करने का अधिकार तो, करता हानि अपार ॥
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