माँस वर्जन Avoid Non-Veg (Animal flesh eating)
1
माँस-वृद्धि अपनी समझ, जो खाता पर माँस ।
कैसे दयार्द्रता-सुगुण, रहता उसके पास ॥
2
धन का भोग उन्हें नहीं, जो न करेंगे क्षेम ।
माँसाहारी को नहीं, दयालुता का नेम ॥
3
ज्यों सशस्त्र का मन कभी, होता नहीं दयाल ।
रुच रुच खावे माँस जो, उसके मन का हाल ॥
4
निर्दयता है जीववध. दया अहिंसा धर्म ।
करना माँसाहार है, धर्म हीन दुष्कर्म ॥
5
रक्षण है सब जीव का, वर्जन करना माँस ।
बचे नरक से वह नहीं, जो खाता है माँस ॥
6
वध न करेंगे लोग यदि, करने को आहार ।
आमिष लावेगा नहीं, कोई विक्रयकार ॥
7
आमिष तो इक जन्तु का, व्रण है यों सुविचार ।
यदि होगा तो चाहिए, तजना माँसाहार ॥
8
जीव-हनन से छिन्न जो, मृत शरीर है माँस ।
दोषरहित तत्वज्ञ तो, खायेंगे नहिं माँस ॥
9
यज्ञ हज़रों क्या किया, दे दे हवन यथेष्ट ।
किसी जीव को हनन कर, माँस न खाना श्रेष्ठ ॥
10
जो न करेगा जीव-वध, और न माँसाहार ।
हाथ जोड़ सारा जगत, करता उसे जुहार ॥
माँस-वृद्धि अपनी समझ, जो खाता पर माँस ।
कैसे दयार्द्रता-सुगुण, रहता उसके पास ॥
2
धन का भोग उन्हें नहीं, जो न करेंगे क्षेम ।
माँसाहारी को नहीं, दयालुता का नेम ॥
3
ज्यों सशस्त्र का मन कभी, होता नहीं दयाल ।
रुच रुच खावे माँस जो, उसके मन का हाल ॥
4
निर्दयता है जीववध. दया अहिंसा धर्म ।
करना माँसाहार है, धर्म हीन दुष्कर्म ॥
5
रक्षण है सब जीव का, वर्जन करना माँस ।
बचे नरक से वह नहीं, जो खाता है माँस ॥
6
वध न करेंगे लोग यदि, करने को आहार ।
आमिष लावेगा नहीं, कोई विक्रयकार ॥
7
आमिष तो इक जन्तु का, व्रण है यों सुविचार ।
यदि होगा तो चाहिए, तजना माँसाहार ॥
8
जीव-हनन से छिन्न जो, मृत शरीर है माँस ।
दोषरहित तत्वज्ञ तो, खायेंगे नहिं माँस ॥
9
यज्ञ हज़रों क्या किया, दे दे हवन यथेष्ट ।
किसी जीव को हनन कर, माँस न खाना श्रेष्ठ ॥
10
जो न करेगा जीव-वध, और न माँसाहार ।
हाथ जोड़ सारा जगत, करता उसे जुहार ॥
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