पाप भीरुता Avoid doing bad

1
पाप-कर्म के मोह से, डरें न पापी लोग ।
उससे डरते हैं वही, पुण्य-पुरुष जो लोग ॥


2
पाप- कर्म दुखजनक हैं, यह है उनकी रीत ।
पावक से भीषण समझ, सो होना भयभीत ॥


3
श्रेष्ठ बुद्धिमत्ता कहें, करके सुधी विचार ।
अपने रिपु का भी कभी, नहिं करना अपकार ॥


4
विस्मृति से भी नर नहीं, सोचे पर की हानि ।
यदि सोचे तो धर्म भी, सोचे उसकी हानि ॥


5
‘निर्धन हूँ मैं’, यों समझ, करे न कोई पाप ।
अगर किया तो फिर मिले, निर्धनता-अभिशाप ॥


206
दुख से यदि दुष्कर्म के, बचने की है राय ।
अन्यों के प्रति दुष्टता, कभी नहीं की जाय ॥


7
अति भयकारी शत्रु से, संभव है बच जाय ।
पाप-कर्म की शत्रुता, पीछा किये सताय ॥


8
दुष्ट- कर्म जो भी करे, यों पायेगा नाश ।
छोड़े बिन पौरों तले, छाँह करे ज्यों वास ॥


9
कोई अपने आपको, यदि करता है प्यार ।
करे नहीं अत्यल्प भी, अन्यों का अपचार ॥


10
नाशरहित उसको समझ, जो तजकर सन्मार्ग ।
पाप-कर्म हो नहिं करे, पकड़े नहीं कुमार्ग ॥

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