सुशासन Good Governance

1
सबसे निर्दाक्षिण्य हो, सोच दोष की रीती ।
उचित दण्ड़ निष्पक्ष रह, देना ही है नीति ॥


2
जीवित हैं ज्यों जीव सब, ताक मेघ की ओर ।
प्रजा ताक कर जी रही, राजदण्ड की ओर ॥


3
ब्राहमण-पोषित वेद औ’, उसमें प्रस्तुत धर्म ।
इनका स्थिर आधार है, राजदण्ड का धर्म ॥


4
प्रजा-पाल जो हो रहा, ढोता शासन-भार ।
पाँव पकड़ उस भूप के, टिकता है संसार ॥


5
है जिस नृप के देश में, शासन सुनीतिपूर्ण ।
साथ मौसिमी वृष्टि के, रहे उपज भी पूर्ण ॥


6
रजा को भाला नहीं, जो देता है जीत ।
राजदण्ड ही दे विजय, यदि उसमें है सीध ॥


7
रक्षा सारे जगत की, करता है नरनाथ ।
उसका रक्षक नीति है, यदि वह चले अबाध ॥


8
न्याय करे नहिं सोच कर, तथा भेंट भी कष्ट ।
ऐसा नृप हो कर पतित, होता खुद ही नष्ट ॥

9
जन-रक्षण कर शत्रु से, करता पालन-कर्म ।
दोषी को दे दण्ड तो, दोष न, पर नृप-धर्म ॥


10
यथा निराता खेत को, रखने फसल किसान ।
मृत्यु-दण्ड नृप का उन्हें, जो हैं दुष्ट महान ॥

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