अविस्मृति Be alert

1
अमित हर्ष से मस्त हो, रहना असावधान ।
अमित क्रोध से भी अधिक, हानि करेगा जान ॥


2
ज्यों है नित्यदारिद्रता, करती बुद्धि-विनाश ।
त्यों है असावधानता, करती कीर्ति-विनाश ॥


3
जो विस्मृत हैं वे नहीं, यश पाने के योग ।
जग में यों हैं एकमत, शास्त्रकार सब लोग ॥


4
लाभ नहीं है दुर्ग से, उनको जो भयशील ।
वैसे उनको ना भला, जो हैं विस्मृतिशील ॥


5
पहले से रक्षा न की, रह कर असावधान ।
विपदा आने पर रहा, पछताता अज्ञान ॥


6
सब जन से सब काल में, अविस्मरण की बान ।
बरती जाय अचूक तो, उसके है न समान ॥


7
रह कर विस्मृति के बिना, सोच-समझ कर कार्य ।
यदि करता है तो उसे, कुछ नहिं असाध्य कार्य ॥


8
करना श्रद्धा-भाव से, शास्त्रकार-स्तुत काम ।
रहा उपेक्षक, यदि न कर, सात जन्म बेकाम ॥


9
जब अपने संतोष में, मस्त बनेंगे आप ।
गफलत से जो हैं मिटे, उन्हें विचारो आप ॥


10
बना रहेगा यदि सदा, लक्ष्य मात्र का ध्यान ।
अपने इच्छित लक्ष्य को, पाना है आसान ॥

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