दान charity
1
देना दान गरीब को, है यथार्थ में दान ।
प्रत्याशा प्रतिदान की, है अन्य में निदान ॥
2
मोक्ष-मार्ग ही क्यों न हो, दान- ग्रहण अश्रेय ।
यद्यपि मोक्ष नहीं मिले, दान-धर्म ही श्रेय ॥
3
‘दीन-हीन हूँ’ ना कहे, करता है यों दान ।
केवल प्राप्य कुलीन में, ऐसी उत्तम बान ॥
4
याचित होने की दशा, तब तक रहे विषण्ण ।
जब तक याचक का वदन, होगा नहीं प्रसन्न ॥
5
क्षुधा-नियन्त्रण जो रहा, तपोनिष्ठ की शक्ति ।
क्षुधा-निवारक शक्ति के, पीछे ही वह शक्ति ॥
6
नाशक-भूक दरिद्र की, कर मिटा कर दूर ।
वह धनिकों को चयन हित, बनता कोष ज़रूर ॥
7
भोजन को जो बाँट कर, किया करेगा भोग ।
उसे नहीं पीड़ित करे, क्षुधा भयंकर रोग ॥
8
धन-संग्रह कर खो रहा, जो निर्दय धनवान ।
दे कर होते हर्ष का, क्या उसको नहिं ज्ञान ॥
9
स्वयं अकेले जीमना, पूर्ति के हेतु ।
याचन करने से अधिक, निश्चय दुख का हेतु ॥
40
मरने से बढ़ कर नहीं, दुख देने के अर्थ ।
सुखद वही जब दान में, देने को असमर्थ ॥
देना दान गरीब को, है यथार्थ में दान ।
प्रत्याशा प्रतिदान की, है अन्य में निदान ॥
2
मोक्ष-मार्ग ही क्यों न हो, दान- ग्रहण अश्रेय ।
यद्यपि मोक्ष नहीं मिले, दान-धर्म ही श्रेय ॥
3
‘दीन-हीन हूँ’ ना कहे, करता है यों दान ।
केवल प्राप्य कुलीन में, ऐसी उत्तम बान ॥
4
याचित होने की दशा, तब तक रहे विषण्ण ।
जब तक याचक का वदन, होगा नहीं प्रसन्न ॥
5
क्षुधा-नियन्त्रण जो रहा, तपोनिष्ठ की शक्ति ।
क्षुधा-निवारक शक्ति के, पीछे ही वह शक्ति ॥
6
नाशक-भूक दरिद्र की, कर मिटा कर दूर ।
वह धनिकों को चयन हित, बनता कोष ज़रूर ॥
7
भोजन को जो बाँट कर, किया करेगा भोग ।
उसे नहीं पीड़ित करे, क्षुधा भयंकर रोग ॥
8
धन-संग्रह कर खो रहा, जो निर्दय धनवान ।
दे कर होते हर्ष का, क्या उसको नहिं ज्ञान ॥
9
स्वयं अकेले जीमना, पूर्ति के हेतु ।
याचन करने से अधिक, निश्चय दुख का हेतु ॥
40
मरने से बढ़ कर नहीं, दुख देने के अर्थ ।
सुखद वही जब दान में, देने को असमर्थ ॥
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