दयालुता Kindness or humanity
1
सर्व धनों में श्रेष्ठ है, दयारूप संपत्ति ।
नीच जनों के पास भी, है भौतिक संपत्ति ॥
2
सत्-पथ पर चल परख कर, दयाव्रती बन जाय ।
धर्म-विवेचन सकल कर, पाया वही सहाय ॥
3
अन्धकारमय नरक है, जहाँ न सुख लवलेश ।
दयापूर्ण का तो वहाँ, होता नहीं प्रवेश ॥
4
सब जीवों को पालते, दयाव्रती जो लोग ।
प्राण-भयंकर पाप का, उन्हें न होगा योग ॥
5
दुःख- दर्द उनको नहीं, जो है दयानिधान ।
पवन संचरित उर्वरा, महान भूमि प्रमाण ॥
6
जो निर्दय हैं पापरत, यों कहते धीमान ।
तज कर वे पुरुषार्थ को, भूले दुःख महान ॥
7
प्राप्य नहीं धनरहित को, ज्यों इहलौकिक भोग ।
प्राप्य नहीं परलोक का, दयारहित को योग ॥
8
निर्धन भी फूले-फले, स्यात् धनी बन जाय ।
निर्दय है निर्धन सदा, काया पलट न जाय ॥
9
निर्दय-जन-कृत सुकृत पर, अगर विचारा जाय ।
तत्व-दर्श ज्यों अज्ञ का, वह तो जाना जाय ॥
10
रोब जमाते निबल पर, निर्दय करे विचार ।
अपने से भी प्रभल के, सम्मुख खुद लाचार ॥
सर्व धनों में श्रेष्ठ है, दयारूप संपत्ति ।
नीच जनों के पास भी, है भौतिक संपत्ति ॥
2
सत्-पथ पर चल परख कर, दयाव्रती बन जाय ।
धर्म-विवेचन सकल कर, पाया वही सहाय ॥
3
अन्धकारमय नरक है, जहाँ न सुख लवलेश ।
दयापूर्ण का तो वहाँ, होता नहीं प्रवेश ॥
4
सब जीवों को पालते, दयाव्रती जो लोग ।
प्राण-भयंकर पाप का, उन्हें न होगा योग ॥
5
दुःख- दर्द उनको नहीं, जो है दयानिधान ।
पवन संचरित उर्वरा, महान भूमि प्रमाण ॥
6
जो निर्दय हैं पापरत, यों कहते धीमान ।
तज कर वे पुरुषार्थ को, भूले दुःख महान ॥
7
प्राप्य नहीं धनरहित को, ज्यों इहलौकिक भोग ।
प्राप्य नहीं परलोक का, दयारहित को योग ॥
8
निर्धन भी फूले-फले, स्यात् धनी बन जाय ।
निर्दय है निर्धन सदा, काया पलट न जाय ॥
9
निर्दय-जन-कृत सुकृत पर, अगर विचारा जाय ।
तत्व-दर्श ज्यों अज्ञ का, वह तो जाना जाय ॥
10
रोब जमाते निबल पर, निर्दय करे विचार ।
अपने से भी प्रभल के, सम्मुख खुद लाचार ॥
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