अस्तेय Non stealing

1
निन्दित जीवन से अगर, इच्छा है बच जाय ।
चोरी से पर-वस्तु की, हृदय बचाया जाय ॥


2
चोरी से पर-संपदा, पाने का कुविचार ।
लाना भी मन में बुरा, है यह पापाचार ॥


3
चोरी-कृत धन में रहे, बढ़्ने का आभास ।
पर उसका सीमारहित, होता ही है नाश ॥


4
चोरी के प्रति लालसा, जो होती अत्यन्त ।
फल पोने के समय पर, देती दुःख अनन्त ॥


5
है गफलत की ताक में, पर-धन की है चाह ।
दयाशीलता प्रेम की, लोभ न पकड़े राह ॥


6
चौर्य-कर्म प्रति हैं जिन्हें, रहती अति आसक्ति ।
मर्यादा पर टिक उन्हें, चलने को नहिं शक्ति ॥


7
मर्यादा को पालते, जो रहते सज्ञान ।
उनमें होता है नहीं, चोरी का अज्ञान ॥


8
ज्यों मर्यादा-पाल के, मन में स्थिर है धर्म ।
त्यों प्रवंचना-पाल के, मन में वंचक कर्म ॥


9
जिन्हें चौर्य को छोड़ कर, औ’ न किसी का ज्ञान ।
मर्यादा बिन कर्म कर, मिटते तभी अजान ॥


 10
चिरों को निज देह भी, ढकेल कर दे छोड़ ।
पालक को अस्तेय व्रत, स्वर्ग न देगा छोड़ ॥

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