स्थान का बोध Guidance about place

1
कोई काम न कर शुरू, तथा न कर उपहास ।
जब तक रिपु को घेरने, स्थल की है नहिं आस ॥


2
शत्रु-भाव से पुष्ट औ’, जो हों अति बलवान ।
उनको भी गढ़-रक्ष तो, बहु फल करे प्रदान ॥


3
निर्बल भी बन कर सबल, पावें जय-सम्मान ।
यदि रिपु पर धावा करें, ख़ोज सुरक्षित स्थान ॥


4
रिपु निज विजय विचार से, धो बैठेंगे हाथ ।
स्थान समझ यदि कार्य में, जुड़ते दृढ नरनाथ ॥


5
गहरे जल में मगर की, अन्यों पर हो जीत ।
जल से बाहर अन्य सब, पावें जय विपरीत ॥


6
भारी रथ दृढ चक्रयुत, चले न सागर पार ।
सागरगामी नाव भी, चले न भू पर तार ॥


7
निर्भय के अतिरिक्त तो, चाहिये न सहकार ।
उचित जगह पर यदि करें, खूब सोच कर कार ॥


8
यदि पाता लघु-सैन्य-युत, आश्रय स्थल अनुकूल ।
उसपर चढ़ बहु-सैन्य युत, होगा नष्ट समूल ॥


9
सदृढ़ दुर्ग साधन बड़ा, है नहिं रिपु के पास ।
फिर भी उसके क्षेत्र में, भिड़ना व्यर्थ प्रयास ॥


10
जिस निर्भय गजराज के, दन्तलग्न बरछैत ।
गीदड़ भी मारे उसे, जब दलदल में कैंद ॥

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