शक्ति का बोध ... Guidance of Strength
1
निज बल रिपु-बल कार्य-बल, साथी-बल भी जान ।
सोच-समझ कर चाहिये, करना कार्य निदान ॥
2
साध्य कार्य को समझ कर, समझ कार्य हित ज्ञेय ।
जम कर धावा जो करे, उसको कुछ न अजेय ॥
3
बोध नहीं निज शक्ति का, वश हो कर उत्साह ।
कार्य शुरू कर, बीच में, मिटे कई नरनाह ॥
4
शान्ति-युक्त बरबात बिन, निज बल मान न जान ।
अहम्मन्य भी जो रहे, शीघ्र मिटेगा जान ॥
5
मोर-पंख से ही सही, छकड़ा लादा जाय ।
यदि लादो वह अत्यधिक, अक्ष भग्न हो जाय ॥
6
चढ़ा उच्चतम डाल पर, फिर भी जोश अनंत ।
करके यदि आगे बढ़े, होगा जीवन-अंत ॥
7
निज धन की मात्रा समझ, करो रीती से दान ।
जीने को है क्षेम से, उचित मार्ग वह जान ॥
8
तंग रहा तो कुछ नहीं, धन आने का मार्ग ।
यदि विस्तृत भी ना रहा, धन जाने का मार्ग ॥
9
निज धन की सीमा समझ, यदि न किया निर्वाह ।
जीवन समृद्ध भासता, हो जायगा तबाह ॥
10
लोकोपकारिता हुई, धन-सीमा नहिं जान ।
तो सीमा संपत्ति की, शीघ्र मिटेगी जान ॥
निज बल रिपु-बल कार्य-बल, साथी-बल भी जान ।
सोच-समझ कर चाहिये, करना कार्य निदान ॥
2
साध्य कार्य को समझ कर, समझ कार्य हित ज्ञेय ।
जम कर धावा जो करे, उसको कुछ न अजेय ॥
3
बोध नहीं निज शक्ति का, वश हो कर उत्साह ।
कार्य शुरू कर, बीच में, मिटे कई नरनाह ॥
4
शान्ति-युक्त बरबात बिन, निज बल मान न जान ।
अहम्मन्य भी जो रहे, शीघ्र मिटेगा जान ॥
5
मोर-पंख से ही सही, छकड़ा लादा जाय ।
यदि लादो वह अत्यधिक, अक्ष भग्न हो जाय ॥
6
चढ़ा उच्चतम डाल पर, फिर भी जोश अनंत ।
करके यदि आगे बढ़े, होगा जीवन-अंत ॥
7
निज धन की मात्रा समझ, करो रीती से दान ।
जीने को है क्षेम से, उचित मार्ग वह जान ॥
8
तंग रहा तो कुछ नहीं, धन आने का मार्ग ।
यदि विस्तृत भी ना रहा, धन जाने का मार्ग ॥
9
निज धन की सीमा समझ, यदि न किया निर्वाह ।
जीवन समृद्ध भासता, हो जायगा तबाह ॥
10
लोकोपकारिता हुई, धन-सीमा नहिं जान ।
तो सीमा संपत्ति की, शीघ्र मिटेगी जान ॥
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