कीर्ति Earn fame in world
1
देना दान गरिब को, जीना कर यश-लाभ ।
इससे बढ़ कर जीव को, और नहीं है लाभ ॥
2
करता है संसार तो, उसका ही गुण-गान ।
याचक को जो दान में, कुछ भी करें प्रदान ॥
3
टिकती है संसार में, अनुपम कीर्ति महान ।
अविनाशी केवल वही, और न कोई जान ॥
4
यदि कोई भूलोक में, पाये कीर्ति महान ।
देवलोक तो ना करें, ज्ञानी का गुण-गान ॥
5
ह्रास बने यशवृद्धिकर, मृत्यु बने अमरत्व ।
ज्ञानवान बिन और में, संभव न यह महत्व ॥
6
जन्मा तो यों जन्म हो, जिसमें होवे नाम ।
जन्म न होना है भला, यदि न कमाया नाम ॥
7
कीर्तिमान बन ना जिया, कुढ़ता स्वयं न आप ।
निन्दक पर कुढ़ते हुए, क्यों होता है ताप ॥
8
यदि नहिं मिली परंपरा, जिसका है यश नाम ।
तो जग में सब के लिये, वही रहा अपनाम ॥
9
कीर्तिहीन की देह का, भू जब ढोती भार ।
पावन प्रभूत उपज का, क्षय होता निर्धार ॥
10
निन्दा बिन जो जी रहा, जीवित वही सुजान ।
कीर्ति बिना जो जी रहा, उसे मरा ही जान ॥
देना दान गरिब को, जीना कर यश-लाभ ।
इससे बढ़ कर जीव को, और नहीं है लाभ ॥
2
करता है संसार तो, उसका ही गुण-गान ।
याचक को जो दान में, कुछ भी करें प्रदान ॥
3
टिकती है संसार में, अनुपम कीर्ति महान ।
अविनाशी केवल वही, और न कोई जान ॥
4
यदि कोई भूलोक में, पाये कीर्ति महान ।
देवलोक तो ना करें, ज्ञानी का गुण-गान ॥
5
ह्रास बने यशवृद्धिकर, मृत्यु बने अमरत्व ।
ज्ञानवान बिन और में, संभव न यह महत्व ॥
6
जन्मा तो यों जन्म हो, जिसमें होवे नाम ।
जन्म न होना है भला, यदि न कमाया नाम ॥
7
कीर्तिमान बन ना जिया, कुढ़ता स्वयं न आप ।
निन्दक पर कुढ़ते हुए, क्यों होता है ताप ॥
8
यदि नहिं मिली परंपरा, जिसका है यश नाम ।
तो जग में सब के लिये, वही रहा अपनाम ॥
9
कीर्तिहीन की देह का, भू जब ढोती भार ।
पावन प्रभूत उपज का, क्षय होता निर्धार ॥
10
निन्दा बिन जो जी रहा, जीवित वही सुजान ।
कीर्ति बिना जो जी रहा, उसे मरा ही जान ॥
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