प्रेम भाव Love feeling is Great towards all
1.
अर्गल है क्या जो रखे, प्रेमी उर में प्यार ।
घोषण करती साफ़ ही, तुच्छ नयन-जल-धार ॥
2
प्रेम-शून्य जन स्वार्थरत, साधें सब निज काम ।
प्रेमी अन्यों के लिये, त्यागें हड्डी-चाम ॥
3
सिद्ध हुआ प्रिय जीव का, जो तन से संयोग ।
मिलन-यत्न-फल प्रेम से, कहते हैं बुध लोग ॥
4
मिलनसार के भाव को, जनन करेगा प्रेम ।
वह मैत्री को जन्म दे, जो है उत्तम क्षेम ॥
5
इहलौकिक सुख भोगते, निश्रेयस का योग ।
प्रेमपूर्ण गार्हस्थ्य का, फल मानें बुध लोग ॥
6
साथी केवल धर्म का, मानें प्रेम, अजान ।
त्राण करे वह प्रेम ही, अधर्म से भी जान ॥
7
कीड़े अस्थिविहीन को, झुलसेगा ज्यों धर्म ।
प्राणी प्रेम विहीन को, भस्म करेगा धर्म ॥
8
नीरस तरु मरु भूमि पर, क्या हो किसलय-युक्त ।
गृही जीव वैसा समझ, प्रेम-रहित मन-युक्त ॥
9
प्रेम देह में यदि नहीं, बन भातर का अंग ।
क्या फल हो यदि पास हों, सब बाहर के अंग ॥
10
प्रेम-मार्ग पर जो चले, देह वही सप्राण ।
चर्म-लपेटी अस्थि है, प्रेम-हीन की मान ॥
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