दया दृष्टि Kindness

1
करुणा रूपी सोहती, सुषमा रही अपार ।
नृप में उसके राजते, टिकता है संसार ॥


2
करुणा से है चल रहा, सांसारिक व्यवहार ।
जो नर उससे रहित है, केवल भू का भार ॥


3
मेल न हो तो गान से, तान करे क्या काम ।
दया न हो तो दृष्टि में, दृग आये क्या काम ॥


4
करुणा कलित नयन नहीं, समुचित सीमाबद्ध ।
तो क्या आवें काम वे, मुख से रह संबन्ध ॥


5
आभूषण है नेत्र का, करुणा का सद्‍भाव ।
उसके बिन जाने उसे, केवल मुख पर घाव ॥


6
रहने पर भी आँख के, जिसके है नहिं आँख ।
यथा ईख भू में लगी, जिसके भी हैं आँख ॥


7
आँखहीन ही हैं मनुज, यदि न आँख का भाव ।
आँखयुक्त में आँख का, होता भी न अभाव ॥


8
हानि बिना निज धर्म की, करुणा का व्यवहार ।
जो कर सकता है उसे, जग पर है अधिकार ॥


  9
अपनी क्षति भी जो करे, उसपर करुणा-भाव ।
धारण कर, करना क्षमा, नृप का श्रेष्ठ स्वभाव ॥


 10
देख मिलाते गरल भी, खा जाते वह भोग ।
वाँछनीय दाक्षिण्य के, इच्छुक हैं जो लोग ॥

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