सैन्य साहस Brave military
1
डटे रहो मत शत्रुओ, मेरे अधिप समक्ष ।
डट कर कई शिला हुए, मेरे अधिप समक्ष ॥
2
वन में शश पर जो लगा, धरने से वह बाण ।
गज पर चूके भाल को, धरने में है मान ॥
3
निर्दय साहस को कहें, महा धीरता सार ।
संकट में उपकार है, उसकी तीक्षण धार ॥
4
कर-भाला गज पर चला, फिरा खोजते अन्य ।
खींच भाल छाती लगा, हर्षित हुआ सुधन्य ॥
5
क्रुद्ध नेत्र यदि देख कर, रिपु का भाल-प्रहार ।
झपकेंगे तो क्या नहीं, वह वीरों को हार ॥
6
‘गहरा घाव लगा नहीं’, ऐसे दिन सब व्यर्थ ।
बीते निज दिन गणन कर, यों मानता समर्थ ॥
7
जग व्यापी यश चाहते, प्राणों की नहिं चाह ।
ऐसों का धरना कड़ा, शोभाकर है, वाह ॥
8
प्राण-भय-रहित वीर जो, जब छिड़ता है युद्ध ।
साहस खो कर ना रुकें, नृप भी रोकें क्रुद्ध ॥
9
प्रण रखने हित प्राण भी, छोड़ेंगे जो चण्ड ।
कौन उन्हें प्रण-भंग का, दे सकता है दण्ड़ ॥
10
दृग भर आये भूप के, सुन जिसका देहांत ।
ग्रहण योग्य है माँग कर, उसका जैसा अंत ॥
डटे रहो मत शत्रुओ, मेरे अधिप समक्ष ।
डट कर कई शिला हुए, मेरे अधिप समक्ष ॥
2
वन में शश पर जो लगा, धरने से वह बाण ।
गज पर चूके भाल को, धरने में है मान ॥
3
निर्दय साहस को कहें, महा धीरता सार ।
संकट में उपकार है, उसकी तीक्षण धार ॥
4
कर-भाला गज पर चला, फिरा खोजते अन्य ।
खींच भाल छाती लगा, हर्षित हुआ सुधन्य ॥
5
क्रुद्ध नेत्र यदि देख कर, रिपु का भाल-प्रहार ।
झपकेंगे तो क्या नहीं, वह वीरों को हार ॥
6
‘गहरा घाव लगा नहीं’, ऐसे दिन सब व्यर्थ ।
बीते निज दिन गणन कर, यों मानता समर्थ ॥
7
जग व्यापी यश चाहते, प्राणों की नहिं चाह ।
ऐसों का धरना कड़ा, शोभाकर है, वाह ॥
8
प्राण-भय-रहित वीर जो, जब छिड़ता है युद्ध ।
साहस खो कर ना रुकें, नृप भी रोकें क्रुद्ध ॥
9
प्रण रखने हित प्राण भी, छोड़ेंगे जो चण्ड ।
कौन उन्हें प्रण-भंग का, दे सकता है दण्ड़ ॥
10
दृग भर आये भूप के, सुन जिसका देहांत ।
ग्रहण योग्य है माँग कर, उसका जैसा अंत ॥
Comments
Post a Comment