बन्धुओं को अपनाना Be with brothers

1
यद्यपि निर्धन हो गये, पहले कृत उपकार ।
कहते रहे बखान कर, केवल नातेदार ॥


2
बन्धु-वर्ग ऐसा मिले, जिसका प्रेम अटूट ।
तो वह दे संपत्ति सब , जिसकी वृद्धि  अटूट ॥


3
मिलनसार जो है नहीं, जीवन उसका व्यर्थ ।
तट बिन विस्तृत ताल ज्यों, भरता जल से व्यर्थ ॥


4
अपने को पाया धनी, तो फल हो यह प्राप्त ।
बन्धु-मंडली घिर रहे, यों रहना बन आप्त ॥


5
मधुर वचन जो बोलता, करता भी है दान ।
बन्धुवर्ग के वर्ग से, घिरा रहेगा जान ॥


6
महादान करते हुए, जो है क्रोध-विमुक्त ।
उसके सम भू में नहीं, बन्धुवर्ग से युक्त ॥


7
बिना छिपाये काँव कर, कौआ खाता भोज्य ।
जो हैं उसी स्वभाव के, पाते हैं सब भोग्य ॥


8
सब को सम देखे नहीं, देखे क्षमता एक ।
इस गुण से स्थायी रहें, नृप के बन्धु अनेक ॥


9
बन्धु बने जो जन रहे, तोड़े यदि बन्धुत्व ।
अनबन का कारण मिटे, तो बनता बन्धुत्व ॥


10
कारण बिन जो बिछुड़ कर, लौटे कारण साथ ।
साध-पूर्ति कर नृप उसे, परख, मिला के साथ ॥

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