आचारशीलता Good Manner

1.
सदाचार-संपन्नता, देती सब को श्रेय ।
तब तो प्राणों से अधिक, रक्षणीय वह ज्ञेय ॥


2
सदाचार को यत्न से, रखना सहित विवेक ।
अनुशीलन से पायगा, वही सहायक एक ॥


3
सदाचार-संपन्नता, है कुलीनता जान ।
चूके यदि आचार से, नीच जन्म है मान ॥


4
संभव है फिर अध्ययन, भूल गया यदि वेद ।
आचारच्युत विप्र के, होगा कुल का छेद ॥


5
धन की ज्यों ईर्ष्यालु के, होती नहीं समृद्धि ।
आचारहीन की नहीं, कुलीनता की वृद्धि ॥


6
सदाचार दुष्कर समझ, धीर न खींचे हाथ ।
परिभव जो हो जान कर, उसकी च्युति के साथ ॥


7
सदाचार से ही रही, महा कीर्ति की प्राप्ति ।
उसकी च्युति से तो रही, आति निन्दा की प्राप्ति ॥


8
सदाचार के बीज से, होता सुख उत्पन्न ।
कदाचार से ही सदा, होता मनुज विपन्न ॥


9
सदाचारयुत लोग तो, मुख से कर भी भूल ।
कहने को असमर्थ हैं, बुरे वचन प्रतिकूल ॥


10
जिनको लोकाचार की, अनुगति का नहिं ज्ञान ।
ज्ञाता हों सब शास्त्र के, जानों उन्हें अजान ॥

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