आलस्यहीनता Avoid Laziness

1
जब तम से आलस्य के, आच्छादित हो जाय ।
अक्षय दीप कुटुंब का, मंद मंद बुझ जाय ॥


2
जो चाहें निज वंश का, बना रहे उत्कर्ष ।
नाश करें आलस्य का, करते उसका धर्ष ॥


3
गोद लिये आलस्य को, जो जड़ करे विलास ।
होगा उसके पूर्व ही, जात-वंश का नाश ॥


4
जो सुस्ती में मग्न हों, यत्न बिना सुविशेष ।
तो उनका कुल नष्ट हो, बढ़ें दोष निःशेष ॥


5
दीर्घसूत्रता, विस्मरण, सुस्ती, निद्रा-चाव ।
जो जन चाहें डूबना, चारों हैं प्रिय नाव ॥


6
सार्वभौम की श्री स्वयं, चाहे आवे पास ।
तो भी जो हैं आलसी, पावें नहिं फल ख़ास ॥


7
सुस्ती-प्रिय बन, यत्न सुठि, करते नहिं जो लोग ।
डांट तथा उपहास भी, सुनते हैं वे लोग ॥


8
घर कर ले आलस्य यदि, रह कुलीन के पास ।
उसके रिपु के वश उसे, बनायगा वह दास ॥


9
सुस्ती-पालन बान का, कर देगा यदि अंत ।
वंश और पुरुषार्थ में, लगे दोष हों अंत ॥


10
क़दम बढ़ा कर विष्णु ने, जिसे किया था व्याप्त ।
वह सब आलसहीन नृप, करे एकदम प्राप्त ॥

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