अक्रोध Control anger
1
जहाँ चले वश क्रोध का, कर उसका अवरोध ।
अवश क्रोध का क्या किया, क्या न किया उपरोध ॥
2
वश न चले जब क्रोध का, तब है क्रोध खराब ।
अगर चले बश फिर वही, सबसे रहा खराब ॥
3
किसी व्यक्ति पर भी कभी, क्रोध न कर, जा भूल ।
क्योंकि अनर्थों का वही, क्रोध बनेगा मूल ॥
4
हास और उल्लास को, हनन करेगा क्रोध ।
उससे बढ़ कर कौन है, रिपु जो करे विरोध ॥
5
रक्षा हित अपनी स्वयं, बचो क्रोध से साफ़ ।
यदि न बचो तो क्रोध ही, तुम्हें करेगा साफ़ ॥
6
आश्रित जन का नाश जो, करे क्रोध की आग ।
इष्ट-बन्धु-जन-नाव को, जलायगी वह आग ॥
7
मान्य वस्तु सम क्रोध को, जो माने वह जाय ।
हाथ मार ज्यों भूमि पर, चोट से न बच जाय ॥
8
अग्निज्वाला जलन ज्यों, किया अनिष्ट यथेष्ट ।
फिर भी यदि संभव हुआ, क्रोध-दमन है श्रेष्ठ ॥
9
जो मन में नहिं लायगा, कभी क्रोध का ख्याल ।
मनचाही सब वस्तुएँ, उसे प्राप्य तत्काल ॥
10
जो होते अति क्रोधवश, हैं वे मृतक समान ।
त्यागी हैं जो क्रोध के, त्यक्त-मृत्यु सम मान ॥
जहाँ चले वश क्रोध का, कर उसका अवरोध ।
अवश क्रोध का क्या किया, क्या न किया उपरोध ॥
2
वश न चले जब क्रोध का, तब है क्रोध खराब ।
अगर चले बश फिर वही, सबसे रहा खराब ॥
3
किसी व्यक्ति पर भी कभी, क्रोध न कर, जा भूल ।
क्योंकि अनर्थों का वही, क्रोध बनेगा मूल ॥
4
हास और उल्लास को, हनन करेगा क्रोध ।
उससे बढ़ कर कौन है, रिपु जो करे विरोध ॥
5
रक्षा हित अपनी स्वयं, बचो क्रोध से साफ़ ।
यदि न बचो तो क्रोध ही, तुम्हें करेगा साफ़ ॥
6
आश्रित जन का नाश जो, करे क्रोध की आग ।
इष्ट-बन्धु-जन-नाव को, जलायगी वह आग ॥
7
मान्य वस्तु सम क्रोध को, जो माने वह जाय ।
हाथ मार ज्यों भूमि पर, चोट से न बच जाय ॥
8
अग्निज्वाला जलन ज्यों, किया अनिष्ट यथेष्ट ।
फिर भी यदि संभव हुआ, क्रोध-दमन है श्रेष्ठ ॥
9
जो मन में नहिं लायगा, कभी क्रोध का ख्याल ।
मनचाही सब वस्तुएँ, उसे प्राप्य तत्काल ॥
10
जो होते अति क्रोधवश, हैं वे मृतक समान ।
त्यागी हैं जो क्रोध के, त्यक्त-मृत्यु सम मान ॥
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