संतान लाभ Son bless by God
1.
बुद्धिमान सन्तान से, बढ़ कर विभव सुयोग्य ।
हम तो मानेंगे नहीं, हैं पाने के योग्य ॥
2
सात जन्म तक भी उसे, छू नहिं सकता ताप ।
यदि पावे संतान जो, शीलवान निष्पाप ॥
3
निज संतान-सुकर्म से, स्वयं धन्य हों जान ।
अपना अर्थ सुधी कहें, है अपनी संतान ॥
4
नन्हे निज संतान के, हाथ विलोड़ा भात ।
देवों के भी अमृत का, स्वाद करेगा मात ॥
5
निज शिशु अंग-स्पर्श से, तन को है सुख-लाभ ।
टूटी- फूटी बात से, श्रुति को है सुख-लाभ ॥
6
मुरली-नाद मधुर कहें, सुमधुर वीणा-गान ।
तुतलाना संतान का, जो न सुना निज कान ॥
7
पिता करे उपकार यह, जिससे निज संतान ।
पंडित-सभा-समाज में, पावे अग्रस्थान ॥
8
विद्यार्जन संतान का, अपने को दे तोष ।
उससे बढ़ सब जगत को, देगा वह संतोष ॥
9
पुत्र जनन पर जो हुआ, उससे बढ़ आनन्द ।
माँ को हो जब वह सुने, महापुरुष निज नन्द ॥
10
पुत्र पिता का यह करे, बदले में उपकार ।
`धन्य धन्य इसके पिता’, यही कहे संसार ॥
बुद्धिमान सन्तान से, बढ़ कर विभव सुयोग्य ।
हम तो मानेंगे नहीं, हैं पाने के योग्य ॥
2
सात जन्म तक भी उसे, छू नहिं सकता ताप ।
यदि पावे संतान जो, शीलवान निष्पाप ॥
3
निज संतान-सुकर्म से, स्वयं धन्य हों जान ।
अपना अर्थ सुधी कहें, है अपनी संतान ॥
4
नन्हे निज संतान के, हाथ विलोड़ा भात ।
देवों के भी अमृत का, स्वाद करेगा मात ॥
5
निज शिशु अंग-स्पर्श से, तन को है सुख-लाभ ।
टूटी- फूटी बात से, श्रुति को है सुख-लाभ ॥
6
मुरली-नाद मधुर कहें, सुमधुर वीणा-गान ।
तुतलाना संतान का, जो न सुना निज कान ॥
7
पिता करे उपकार यह, जिससे निज संतान ।
पंडित-सभा-समाज में, पावे अग्रस्थान ॥
8
विद्यार्जन संतान का, अपने को दे तोष ।
उससे बढ़ सब जगत को, देगा वह संतोष ॥
9
पुत्र जनन पर जो हुआ, उससे बढ़ आनन्द ।
माँ को हो जब वह सुने, महापुरुष निज नन्द ॥
10
पुत्र पिता का यह करे, बदले में उपकार ।
`धन्य धन्य इसके पिता’, यही कहे संसार ॥
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