गुप्तचर व्यवस्था spy system

1
जो अपने चर हैं तथा, नीतिशास्त्र विख्यात ।
ये दोनों निज नेत्र हैं, नृप को होना ज्ञात ॥


2
सब पर जो जो घटित हों, सब बातें सब काल ।
राजधर्म है जानना, चारों से तत्काल ॥


3
बात चरों से जानते, आशय का नहिं ज्ञान ।
तो उस नृप की विजय का, मार्ग नहीं है आन ॥


4
राजकर्मचारी, स्वजन, तथा शत्रु जो वाम ।
सब के सब को परखना, रहा गुप्तचर-काम ॥


5
रूप देख कर शक न हो, आँख हुई, निर्भीक ।
कहीं कहे नहिं मर्म को, सक्षम वह चर ठीक ॥


6
साधु वेष में घुस चले, पता लगाते मर्म ।
फिर कुछ भी हो चुप रहे, यही गुप्तचर-कर्म ॥


7
भेद लगाने में चतुर, फिर जो बातें ज्ञात ।
उनमें संशयरहित हो, वही भेदिया ख्यात ॥


8
पता लगा कर भेद का, लाया यदि इक चार ।
भेद लगा फिर अन्य से, तुलना कर स्वीकार ॥


 9
चर चर को जाने नहीं, यों कर शासन-कर्म ।
सत्य मान, जब तीन चर, कहें एक सा मर्म ॥


10
खुले आम जासूस का, करना मत सम्मान ।
अगर किया तो भेद को, प्रकट किया खुद जान ॥

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