क्षमाशीलता Forgiveness
1.
क्षमा क्षमा कर ज्यों धरे, जो खोदेगा फोड़ ।
निन्दक को करना क्षमा, है सुधर्म बेजोड़ ॥
2
अच्छा है सब काल में, सहना अत्याचार ।
फिर तो उसको भूलना, उससे श्रेष्ठ विचार ॥
3
दारिद में दारिद्रय है, अतिथि-निवारण-बान ।
सहन मूर्ख की मूर्खता, बल में भी बल जान ॥
4
अगर सर्व-गुण-पूर्णता, तुमको छोड़ न जाय ।
क्षमा-भाव का आचरण, किया लगन से जाय ॥
5
प्रतिकारी को जगत तो, माने नहीं पदार्थ ।
क्षमशील को वह रखे, स्वर्ण समान पदार्थ ॥
6
प्रतिकारी का हो मज़ा, एक दिवस में अन्त ।
क्षमाशीला को कीर्ति है, लोक-अंत पर्यन्त ॥
7
यद्यपि कोई आपसे, करता अनुचित कर्म ।
अच्छा उस पर कर दया, करना नहीं अधर्म ॥
8
अहंकार से ज़्यादती, यदि तेरे विपरीत ।
करता कोई तो उसे, क्षमा-भाव से जीत ॥
9
संन्यासी से आधिक हैं, ऐसे गृही पवित्र ।
सहन करें जो नीच के, कटुक वचन अपवित्र ॥
10
अनशन हो जो तप करें, यद्यपि साधु महान ।
पर-कटुवचन-सहिष्णु के, पीछे पावें स्थान ॥
क्षमा क्षमा कर ज्यों धरे, जो खोदेगा फोड़ ।
निन्दक को करना क्षमा, है सुधर्म बेजोड़ ॥
2
अच्छा है सब काल में, सहना अत्याचार ।
फिर तो उसको भूलना, उससे श्रेष्ठ विचार ॥
3
दारिद में दारिद्रय है, अतिथि-निवारण-बान ।
सहन मूर्ख की मूर्खता, बल में भी बल जान ॥
4
अगर सर्व-गुण-पूर्णता, तुमको छोड़ न जाय ।
क्षमा-भाव का आचरण, किया लगन से जाय ॥
5
प्रतिकारी को जगत तो, माने नहीं पदार्थ ।
क्षमशील को वह रखे, स्वर्ण समान पदार्थ ॥
6
प्रतिकारी का हो मज़ा, एक दिवस में अन्त ।
क्षमाशीला को कीर्ति है, लोक-अंत पर्यन्त ॥
7
यद्यपि कोई आपसे, करता अनुचित कर्म ।
अच्छा उस पर कर दया, करना नहीं अधर्म ॥
8
अहंकार से ज़्यादती, यदि तेरे विपरीत ।
करता कोई तो उसे, क्षमा-भाव से जीत ॥
9
संन्यासी से आधिक हैं, ऐसे गृही पवित्र ।
सहन करें जो नीच के, कटुक वचन अपवित्र ॥
10
अनशन हो जो तप करें, यद्यपि साधु महान ।
पर-कटुवचन-सहिष्णु के, पीछे पावें स्थान ॥
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