संयम्शीलता Be patience
1.
संयम देता मनुज को, अमर लोक का वास ।
झोंक असंयम नरक में, करता सत्यानास ॥
2
संयम की रक्षा करो, निधि अनमोल समान ।
श्रेय नहीं है जीव को, उससे अधिक महान ॥
3
कोई संयमशील हो, अगर जानकर तत्व ।
संयम पा कर मान्यता, देगा उसे महत्व ॥
4
बिना टले निज धर्म से, जो हो संयमशील ।
पर्वत से भी उच्चतर, होगा उसका डील ॥
5
संयम उत्तम वस्तु है, जन के लिये अशेष ।
वह भी धनिकों में रहे, तो वह धन सुविशेष ॥
6
पंचेन्द्रिय-निग्राह किया, कछुआ सम इस जन्म ।
तो उससे रक्षा सुदृढ़, होगी सातों जन्म ॥
7
चाहे औरोंको नहीं, रख लें वश में जीभ ।
शब्द-दोष से हों दुखी, यदि न वशी हो जीभ ॥
8
एक बार भी कटुवचन, पहुँचाये यदि कष्ट ।
सत्कर्मों के सुफल सब, हो जायेंगे नष्ट ॥
9
घाव लगा जो आग से, संभव है भर जाय ।
चोट लगी यदि जीभ की, कभी न मोटी जाय ॥
10
क्रोध दमन कर जो हुआ, पंडित यमी समर्थ ।
धर्म-देव भी जोहता, बाट भेंट के अर्थ ॥
संयम देता मनुज को, अमर लोक का वास ।
झोंक असंयम नरक में, करता सत्यानास ॥
2
संयम की रक्षा करो, निधि अनमोल समान ।
श्रेय नहीं है जीव को, उससे अधिक महान ॥
3
कोई संयमशील हो, अगर जानकर तत्व ।
संयम पा कर मान्यता, देगा उसे महत्व ॥
4
बिना टले निज धर्म से, जो हो संयमशील ।
पर्वत से भी उच्चतर, होगा उसका डील ॥
5
संयम उत्तम वस्तु है, जन के लिये अशेष ।
वह भी धनिकों में रहे, तो वह धन सुविशेष ॥
6
पंचेन्द्रिय-निग्राह किया, कछुआ सम इस जन्म ।
तो उससे रक्षा सुदृढ़, होगी सातों जन्म ॥
7
चाहे औरोंको नहीं, रख लें वश में जीभ ।
शब्द-दोष से हों दुखी, यदि न वशी हो जीभ ॥
8
एक बार भी कटुवचन, पहुँचाये यदि कष्ट ।
सत्कर्मों के सुफल सब, हो जायेंगे नष्ट ॥
9
घाव लगा जो आग से, संभव है भर जाय ।
चोट लगी यदि जीभ की, कभी न मोटी जाय ॥
10
क्रोध दमन कर जो हुआ, पंडित यमी समर्थ ।
धर्म-देव भी जोहता, बाट भेंट के अर्थ ॥
Comments
Post a Comment