निष्फल धन Unfruitful income

 निष्फल धन



1
भर कर घर भर प्रचुर धन, जो करता नहिं भोग ।
धन के नाते मृतक है, जब है नहिं उपयोग ॥


2
‘सब होता है अर्थ से’, रख कर ऐसा ज्ञान ।
कंजूसी के मोह से, प्रेत-जन्म हो मलान ॥


3
लोलुप संग्रह मात्र का, यश का नहीं विचार ।
ऐसे लोभी का जनम, है पृथ्वी को भार ॥


4
किसी एक से भी नहीं, किया गया जो प्यार ।
निज अवशेष स्वरूप वह, किसको करे विचार ॥


5
जो करते नहिं दान ही, करते भी नहिं भोग ।
कोटि कोटि धन क्यों न हो, निर्धन हैं वे लोग ॥


6
योग्य व्यक्ति को कुछ न दे, स्वयं न करता भोग ।
विपुल संपदा के लिये, इस गुण का नर रोग ॥


7
कुछ देता नहिं अधन को, ऐसों का धन जाय ।
क्वाँरी रह अति गुणवती, ज्यों बूढ़ी हो जाय ॥


8
अप्रिय जन के पास यदि, आश्रित हो संपत्ति ।
ग्राम-मध्य विष-वृक्ष ज्यों, पावे फल-संपत्ति ॥


 9
प्रेम-भाव तज कर तथा, भाव धर्म से जन्य ।
आत्म-द्रोह कर जो जमा, धन हथियाते अन्य ॥


10
उनकी क्षणिक दरिद्रता, जो नामी धनवान ।
जल से खाली जलद का, है स्वभाव समान ॥

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