प्रवचने-श्रीब्रह्मचैतन्य महाराज :: २० फेब्रुवारी :: कर्तव्य में परमात्मा का स्मरण
प्रवचने-श्रीब्रह्मचैतन्य महाराज :: २० फेब्रुवारी :: कर्तव्य में परमात्मा का स्मरण
हम कर्तव्य को न भूलें। भगवान का अनुसंधान रखें। व्यवहार में भी कर्तव्य करते रहना चाहिए। शेष भगवान पर छोड दें। यदि कर्तव्य करते समय हमें भगवान का स्मरण हुआ तो समझो कि सिद्धी की प्रतिति होने लगी। इसी में सिद्धि का बीज है। हमें तो इस ढंग से गृहस्थी करनी चाहिए जिसमे प्रभुराम का विस्मरण न हो। हमें शरीर को हमेशा कर्तव्य के लिए सचेत करना चाहिए। कर्तव्य पूर्ति से समाधान मिलता है। कर्तव्य का कभी विस्मरण नहीं होना चाहिए; हृदय में भगवान रघुवीर की भावना जागृत रखनी चाहिए। जो इस प्रकार व्यवहार करेगा उसका चक्रपाणी अर्थात् भगवान से नाता स्थापित होगा। हमें हमेशा उद्योगरत रहना चाहिए। कर्तव्य को कभी भूलना नहीं चाहिए। किन्तु प्रभुराम का स्मरण रखना हमारा कर्तव्य है। प्रभुराम पर नितान्त विश्वास रखना चाहिए, भगवत् स्मरण रखें और देह को भूल जाएँ, यही भक्ति का प्रमुख लक्षण है। हम ही सब कर्ता - धर्ता हैं, ऐसा कभी नहीं मानना चाहिए। शास्त्री, पंडीत, महापंडीत होकर जो प्रभु के चरणों का रात - दिन स्मरण नहीं करता, उसका मानो जीना ही व्यर्थ है। सच्चे सुख का असली उपाय भगवान की सेवा में रात दिन रहना है। हमारे चित्त में प्रभु के चरणों मे समर्पण की भावना ही जागृर रहनी चाहिए। गृहस्थी का आसक्ती छोडना ही परमात्मा के प्रति प्रेम का लक्षण है। सभी कर्मों में भगवान के अधिष्ठान में ही हमारा सच्चा कल्याण है। जो भी भला - बुरा हममें होगा उसे भगवान के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। राम के प्रति मन लगा कर, सुख से गृहस्थी करें। अपने को राम के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए, सुख-दु:ख की भावना को भूल जाना चाहिए। जिसने अपना भाव नामस्मरण में लगा दिया है[hai] उसकी माता धन्य है[ hai]। प्रभुराम के अलावा इस विश्व में दूसरा कोई सत्य नहीं है। प्रभुराम के समीप रहकर सुख से जीवन व्यतीत करें। जो अपने जीवन को राम को समर्पित कर देता है उसका व्यवहार ही असली योग - साधना है।
जो कुछ मेरा है वह सब प्रभु राम का है ऐसा समझकर बरताव करेना चाहिए। जब आगे - पीछे सर्वत्र प्रभु राम हैं ऐसा मान लिया तो मन के कष्ट मिट जाते हैं। वास्तव में यह सरल बात है पर हम आचरण में नहीं लेते। हमें मन से राम का हो जाना चाहिए, ऐसा विश्वास रखना चाहिए कि जो भी होगा प्रभु राम की इच्छा के अनुसार ही होगा। अपना चित्त भगवान राम में तन्मय कर दूसरे किसी का स्मरण भी नहीं होना चाहिए। दुनिया में उसकी ही प्रतिष्ठा होती है जो ईश्वर का दास हो जाता है। मालिक के सिवाय और किसी की स्मरण न करना ही दासता का सच्चा लक्षण है। हम सब राम के दास हैं, यही भावना हृदय में नित्य हो। जगत् में एक ही मेरा है, रघुपति। इसके सिवाय दूसरा विचार मन में नहीं आना चाहिए। यही हमारा निर्धार हो। यदि हमारी प्रभुराम के प्रति दृढ श्रद्धा होगी तो जीवन में किसी कमी का अनुभव नहीं करना पडेगा। सभी बातों की वह पूर्ति करेगा। सारा दु:ख मिट जाएगा। प्रभु राम ही हमारे माता - पिता, भाई, सखा, सब कुछ हैं, मेरा सर्वस्व हैं इसके सिवाय दूसरा कोई विचार मन में मत आने दो।
बोधवचन: अब हमें स्वयं सँभलना चाहिए, राम के बिना एक भी क्षण न जाने पाए।
॥ श्रीराम जय राम जय जय राम ॥
प्रवचने-श्रीब्रह्मचैतन्य महाराज :: २० फेब्रुवारी :: कर्तव्यात परमात्म्याचे स्मरण ।
आपले कर्तव्याला न विसरावे । भगवंताचे अनुसंधान राखावे ॥
व्यवहाराने योग्य ते कर्तव्य करीत जावे । बाकी रामावर सोपवावे ॥
कर्तव्यात परमात्म्याचे स्मरण । यातच सिद्धीचे बीज जाण ॥
असा करावा संसार । जेणे राम न होईल दूर ॥
देहाने कर्तव्याची जागृति । त्यात ठेवावी भगवंताची स्मृति । कर्तव्यात असते मनाची शांति ॥
कर्तव्याचा कधी न पडावा विसर । हृदयी धरावा रघुवीर ॥
ऐसे वागेल जो जनी । त्याने जोडला चक्रपाणि ॥
उद्योगाशिवाय राहू नये । कर्तव्याला चुकू नये । पण त्यात रामाला विसरू नये ॥
ठेवावा रामावर विश्वास । कर्तव्याची जागृति ठेवून खास ॥
देहाचा विसर पण भगवंताचे ध्यान । हेच भक्तीचे लक्षण ॥
देह करावा रामार्पण । स्वतःचे कर्तेपण सोडून ॥
शास्त्री पंडित विद्वान झाला । भगवत्पदी न रंगला । व्यर्थ व्यर्थ त्याचे जिणे ॥
भगवंतापाशी राहावे रात्रंदिन । हाच सुखाचा उत्तम उपाय जाण ॥
रामाचे चरणी घ्यावी गति । हाच विचार आणावा चित्ती ॥
सुटावी प्रपंचाची आस । तेथे परमात्म्याचे प्रेम खास ॥
सर्व कर्मांत अधिष्ठान असावे देवाचे । तोच कल्याण करील साचे ॥
भले बुरे जे असेल काही । ते सोडावे रामापायी ॥
चित्त असावे रामापायी । देहाने खुशाल संसारात राही ॥
आपण व्हावे रामार्पण । सुखदुःखास न उरावे जाण ॥
धन्य त्याची जननी । ज्याने राम आणिला ध्यानी मनी ॥
रामाविण दुजे काही । आता सत्य उरले नाही ॥
भाव ठेवावा चित्तात । सुखे आयुष्य घालवावे त्याचे सान्निध्यात ॥
ज्याने जिणे केले रामार्पण । त्यासी व्यवहार हेच खरे योगसाधन ॥
'माझे सर्व ते रामाचे' । मानून जगात वागणे साचे ।
अशास नाही कष्ट फार । मागे पुढे रघुवीर ॥
आपण व्हावे मनाने रामाचे । राम जे करील तेच घडेल साचे ॥
चित्त ठेवावे रामापायी । दुजे मनात न आणावे काही ॥
आता न सोडावी हरीची कास । होऊन जावे त्याचे दास ॥
दास्यत्वाचे मुख्य लक्षण । मालकावाचून न दुसऱ्याची आठवण ॥
भगवंताचा दास झाला । जग मानत त्याला ॥
म्हणून आपण सर्व आहो रामाचे दास । हे उरी बाळगावे खास ॥
'एकच जगती माझा रघुपति' । याहून दुजा न करावा विचार । हाच ठेवावा निर्धार ॥
भाव ठेवता रामापायी । तो कधी कमी पडू देणार नाही ॥
मनाने जावे भगवंताला शरण । जो चुकवील दुःखाचे कारण ॥
राम माझी मातापिता । बंधु सोयरा सखा ।
तोच माझे सर्वस्वाचे ठिकाणी । याहून दुजा विचार मनात न आणी ॥
आता सांभाळावे सर्वांनी आपण । रामाविण जाऊ न द्यावा क्षण ॥
जानकी जीवन स्मरण जयजय राम ।
श्रीराम समर्थ ।।
अनंतकोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज
सच्चिदानंद सदगुरु श्री ब्रम्हचैतन्य रामानंद प्रल्हाद महाराज...
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