महानता Greatness

1
मानव को विख्याति दे, रहना सहित उमंग ।
‘जीयेंगे उसके बिना’, है यों कथन कलक ॥


2
सभी मनुज हैं जन्म से, होते एक समान ।
गुण-विशेष फिर सम नहीं, कर्म-भेद से जान ॥


3
छोटे नहिं होते बड़े, यद्यपि स्थिति है उच्च ।
निचली स्थिति में भी बड़े, होते हैं नहिं तुच्छ ॥


4
एक निष्ठ रहती हुई, नारी सती समान ।
आत्म-संयमी जो रहा, उसका हो बहुमान ॥


5
जो जन महानुभव हैं, उनको है यह साध्य ।
कर चुकना है रीति से, जो हैं कार्य असाध्य ॥


6
छोटों के मन में नहीं, होता यों सुविचार ।
पावें गुण नर श्रेष्ठ का, कर उनका सत्कार ॥


7
लगती है संपन्नता, जब ओछों के हाथ ।
तब भी अत्याचार ही, करे गर्व के साथ ॥


8
है तो महानुभावता, विनयशील सब पर्व ।
अहम्मन्य हो तुच्छता, करती है अति गर्व ॥


9
अहम्मन्यता-हीनता, है महानता बान ।
अहम्मन्यता-सींव ही, ओछापन है जान ॥


 10
दोषों को देना छिपा, है महानता-भाव ।
दोषों की ही घोषणा, है तुच्छत- स्वभाव ॥

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