मद्य निषेध Band Bad Habit

1
जो मधु पर आसक्त हैं, खोते हैं सम्मान ।
शत्रु कभी डरते नहीं, उनसे कुछ भय मान ॥


2
मद्य न पीना, यदि पिये, वही पिये सोत्साह ।
साधु जनों के मान की, जिसे नहीं परवाह ॥


3
माँ के सम्मुख भी रही, मद-मत्तता खराब ।
तो फिर सम्मुख साधु के, कितनी बुरी शराब ॥


4
जग-निंदित अति दोषयुत, जो हैं शराबखोर ।
उनसे लज्जा-सुन्दरी, मूँह लेती है मोड़ ॥


5
विस्मृति अपनी देह की, क्रय करना दे दाम ।
यों जाने बिन कर्म-फल, कर देना है काम ॥


6
सोते जन तो मृतक से, होते हैं नहिं भिन्न ।
विष पीते जन से सदा, मद्यप रहे अभिन्न ॥


7
जो लुक-छिप मधु पान कर, खोते होश-हवास ।
भेद जान पुर-जन सदा, करते हैं परिहास ॥


8
‘मधु पीना जाना नहीं’, तज देना यह घोष ।
पीने पर झट हो प्रकट, मन में गोपित दोष ॥


 9
मद्यप का उपदेश से, होना होश-हवास ।
दीपक ले जल-मग्न की, करना यथा तलाश ॥


 10
बिना पिये रहते समय, मद-मस्त को निहार ।
सुस्ती का, पीते स्वयं, करता क्यों न विचार ॥

Comments

Popular posts from this blog

अशक्य ही शक्य करतील स्वामी ।

पंचप्राण हे आतुर झाले, करण्या तव आरती

लागवडीचे अंतराप्रमाणे एकरी किती झाड बसतील ह्याचे गणित असे कराल!