लज्जाशीलता Pudency
लज्जाशीलता
1
लज्जित होना कर्म से, लज्जा रही बतौर ।
सुमुखी कुलांगना-सुलभ, लज्जा है कुछ और ॥
2
अन्न वस्त्र इत्यादि हैं, सब के लिये समान ।
सज्जन की है श्रेष्ठता, होना लज्जावान ॥
3
सभी प्राणियों के लिये, आश्रय तो है देह ।
रखती है गुण-पूर्णता, लज्जा का शुभ गेह ॥
4
भूषण महानुभाव का, क्या नहिं लज्जा-भाव ।
उसके बिन गंभीर गति, क्या नहिं रोग-तनाव ॥
5
लज्जित है, जो देख निज, तथा पराया दोष ।
उनको कहता है जगत, ‘यह लज्जा का कोष’ ॥
6
लज्जा को घेरा किये, बिना सुरक्षण-योग ।
चाहेंगे नहिं श्रेष्ठ जन, विस्तृत जग का भोग ॥
7
लज्जा-पालक त्याग दें, लज्जा के हित प्राण ।
लज्जा को छोड़ें नहीं, रक्षित रखने जान ॥
8
अन्यों को लज्जित करे, करते ऐसे कर्म ।
उससे खुद लज्जित नहीं, तो लज्जित हो धर्म ॥
9
यदि चूके सिद्धान्त से, तो होगा कुल नष्ट ।
स्थाई हो निर्लज्जता, तो हों सब गुण नष्ट ॥
10
कठपुथली में सूत्र से, है जीवन-आभास ।
त्यों है लज्जाहीन में, चैतन्य का निवास ॥
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