कुलीनता Good manner

1
लज्जा, त्रिकरण-एकता, इन दोनों का जोड़ ।
सहज मिले नहिं और में, बस कुलीन को छोड़ ॥


2
सदाचार लज्जा तथा, सच्चाई ये तीन ।
इन सब से विचलित कभी, होते नहीं कुलीन ॥


3
सुप्रसन्न मुख प्रिय वचन, निंदा-वर्जन दान ।
सच्चे श्रेष्ठ कुलीन हैं, चारों का संस्थान ॥


4
कोटि कोटि धन ही सही, पायें पुरुष कुलीन ।
तो भी वे करते नहीं, रहे कर्म जो हीन ॥


5
हाथ खींचना ही पड़े, यद्यपि हो कर दीन ।
छोडें वे न उदारता, जिनका कुल प्राचीन ॥


6
पालन करते जी रहें, जो निर्मल कुल धर्म ।
यों जो हैं वे ना करें, छल से अनुचित कर्म ॥


7
जो जन बडे कुलीन हैं, उन पर लगा कलंक ।
नभ में चन्द्र-कलंक सम, प्रकटित हो अत्तंग ॥


8
रखते सुगुण कुलीन के, जो निकले निःस्नेह ।
उसके कुल के विषय में, होगा ही संदेह ॥


9
अंकुर करता है प्रकट, भू के गुण की बात ।
कुल का गुण, कुल-जात की, वाणी करती ज्ञात ॥


 10
जो चाहे अपना भला, पकडे लज्जा-रीत ।
जो चाहे कुल-कानि को, सब से रहे विनीत ॥

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