मान Respect
1
जीवित रहने के लिये, यद्यपि है अनिवार्य ।
फिर भी जो कुल-हानिकर, तज देना वे कार्य ॥
2
जो हैं पाना चाहते, कीर्ति सहित सम्मान ।
यश-हित भी करते नहीं, जो कुल-हित अपमान ॥
3
सविनय रहना चाहिये, रहते अति संपन्न ।
तन कर रहना चाहिये, रहते बड़ा विपन्न ॥
4
गिरते हैं जब छोड़कर, निज सम्मानित स्थान ।
नर बनते हैं यों गिरे, सिर से बाल समान ॥
5
अल्प घुंघची मात्र भी, करते जो दुष्काम ।
गिरि सम ऊँचे क्यों न हों, होते हैं बदनाम ॥
6
न तो कीर्ति की प्राप्ति हो, न हो स्वर्ग भी प्राप्त ।
निंदक का अनुचर बना, तो औ’ क्या हो प्राप्त ॥
7
निंदक का अनुचर बने, जीवन से भी हेय ।
‘ज्यों का त्यों रह मर गया’, कहलाना है श्रेय ॥
8
नाश काल में मान के, जो कुलीनता-सत्व ।
तन-रक्षित-जीवन भला, क्या देगा अमरत्व ॥
9
बाल कटा तो त्याग दे, चमरी-मृग निज प्राण ।
उसके सम नर प्राण दें, रक्षा-हित निज मान ॥
10
जो मानी जीते नहीं, होने पर अपमान ।
उनके यश को पूज कर, लोक करे गुण-गान ॥
जीवित रहने के लिये, यद्यपि है अनिवार्य ।
फिर भी जो कुल-हानिकर, तज देना वे कार्य ॥
2
जो हैं पाना चाहते, कीर्ति सहित सम्मान ।
यश-हित भी करते नहीं, जो कुल-हित अपमान ॥
3
सविनय रहना चाहिये, रहते अति संपन्न ।
तन कर रहना चाहिये, रहते बड़ा विपन्न ॥
4
गिरते हैं जब छोड़कर, निज सम्मानित स्थान ।
नर बनते हैं यों गिरे, सिर से बाल समान ॥
5
अल्प घुंघची मात्र भी, करते जो दुष्काम ।
गिरि सम ऊँचे क्यों न हों, होते हैं बदनाम ॥
6
न तो कीर्ति की प्राप्ति हो, न हो स्वर्ग भी प्राप्त ।
निंदक का अनुचर बना, तो औ’ क्या हो प्राप्त ॥
7
निंदक का अनुचर बने, जीवन से भी हेय ।
‘ज्यों का त्यों रह मर गया’, कहलाना है श्रेय ॥
8
नाश काल में मान के, जो कुलीनता-सत्व ।
तन-रक्षित-जीवन भला, क्या देगा अमरत्व ॥
9
बाल कटा तो त्याग दे, चमरी-मृग निज प्राण ।
उसके सम नर प्राण दें, रक्षा-हित निज मान ॥
10
जो मानी जीते नहीं, होने पर अपमान ।
उनके यश को पूज कर, लोक करे गुण-गान ॥
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