औषध Medicine
1
वातादिक जिनको गिना, शास्त्रज्ञों ने तीन ।
बढ़ते घटते दुःख दें, करके रोगाधीन ॥
2
खादित का पचना समझ, फिर दे भोजन-दान ।
तो तन को नहिं चाहिये, कोई औषध-पान ॥
3
जीर्ण हुआ तो खाइये, जान उचित परिमाण ।
देहवान हित है वही, चिरायु का सामान ॥
4
जीर्ण कुआ यह जान फिर, खूब लगे यदि भूख ।
खाओ जो जो पथ्य हैं, रखते ध्यान अचूक ॥
5
करता पथ्याहार का, संयम से यदि भोग ।
तो होता नहिं जीव को, कोई दुःखद रोग ॥
6
भला समझ मित भोज का, जीमे तो सुख-वास ।
वैसे टिकता रोग है, अति पेटू के पास ॥
7
जाठराग्नि की शक्ति का, बिना किये सुविचार ।
यदि खाते हैं अत्याधिक, बढ़ते रोग अपार ॥
8
ठीक समझ कर रोग क्या, उसका समझ निदान ।
समझ युक्ति फिर शमन का, करना यथा विधान ॥
9
रोगी का वय, रोग का, काल तथा विस्तार ।
सोच समझकर वैद्य को, करना है उपचार ॥
10
रोगी वैद्य देवा तथा, तीमारदार संग ।
चार तरह के तो रहे, वैद्य शास्त्र के अंग ॥
वातादिक जिनको गिना, शास्त्रज्ञों ने तीन ।
बढ़ते घटते दुःख दें, करके रोगाधीन ॥
2
खादित का पचना समझ, फिर दे भोजन-दान ।
तो तन को नहिं चाहिये, कोई औषध-पान ॥
3
जीर्ण हुआ तो खाइये, जान उचित परिमाण ।
देहवान हित है वही, चिरायु का सामान ॥
4
जीर्ण कुआ यह जान फिर, खूब लगे यदि भूख ।
खाओ जो जो पथ्य हैं, रखते ध्यान अचूक ॥
5
करता पथ्याहार का, संयम से यदि भोग ।
तो होता नहिं जीव को, कोई दुःखद रोग ॥
6
भला समझ मित भोज का, जीमे तो सुख-वास ।
वैसे टिकता रोग है, अति पेटू के पास ॥
7
जाठराग्नि की शक्ति का, बिना किये सुविचार ।
यदि खाते हैं अत्याधिक, बढ़ते रोग अपार ॥
8
ठीक समझ कर रोग क्या, उसका समझ निदान ।
समझ युक्ति फिर शमन का, करना यथा विधान ॥
9
रोगी का वय, रोग का, काल तथा विस्तार ।
सोच समझकर वैद्य को, करना है उपचार ॥
10
रोगी वैद्य देवा तथा, तीमारदार संग ।
चार तरह के तो रहे, वैद्य शास्त्र के अंग ॥
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