अहम्मन्य मूढ़ता Selfish silly man
1
सबसे बुरा अभाव है, सद्बुद्धि का अभाव ।
दुनिया अन्य अभाव को, नहिं मानती अभाव ॥
2
बुद्धिहीन नर हृदय से, करता है यदि दान ।
प्रातिग्राही का सुकृत वह, और नहीं कुछ जान ॥
3
जितनी पीड़ा मूढ़ नर, निज को देता आप ।
रिपु को भी संभव नहीं, देना उतना ताप ॥
4
हीन-बुद्धि किसको कहें, यदि पूछोगे बात ।
स्वयं मान ‘हम हैं सुधी’, भ्रम में पड़ना ज्ञात ॥
5
अपठित में ज्यों पठित का, व्यंजित करना भाव ।
सुपठित में भी दोष बिन, जनमे संशय-भाध ॥
6
मिटा न कर निज दोष को, गोपन कर अज्ञान ।
ढकना पट से गुहय को, अल्प बुद्धि की बान ॥
7
प्रकट करे मतिहीन जो, अति सहस्य की बात ।
अपने पर खुद ही बड़ा, कर लेगा आघात ॥
8
समझाने पर ना करे, और न समझे आप ।
मरण समय तक जीव वह, रहा रोग-अभिशाप ॥
9
समझाते नासमझ को, रहे नासमझ आप ।
समझदार सा नासमझ, स्वयं दिखेगा आप ॥
10
जग जिसके अस्तित्व को, ‘है’ कह लेता मान ।
जो न मानता वह रहा, जग में प्रेत समान ॥
सबसे बुरा अभाव है, सद्बुद्धि का अभाव ।
दुनिया अन्य अभाव को, नहिं मानती अभाव ॥
2
बुद्धिहीन नर हृदय से, करता है यदि दान ।
प्रातिग्राही का सुकृत वह, और नहीं कुछ जान ॥
3
जितनी पीड़ा मूढ़ नर, निज को देता आप ।
रिपु को भी संभव नहीं, देना उतना ताप ॥
4
हीन-बुद्धि किसको कहें, यदि पूछोगे बात ।
स्वयं मान ‘हम हैं सुधी’, भ्रम में पड़ना ज्ञात ॥
5
अपठित में ज्यों पठित का, व्यंजित करना भाव ।
सुपठित में भी दोष बिन, जनमे संशय-भाध ॥
6
मिटा न कर निज दोष को, गोपन कर अज्ञान ।
ढकना पट से गुहय को, अल्प बुद्धि की बान ॥
7
प्रकट करे मतिहीन जो, अति सहस्य की बात ।
अपने पर खुद ही बड़ा, कर लेगा आघात ॥
8
समझाने पर ना करे, और न समझे आप ।
मरण समय तक जीव वह, रहा रोग-अभिशाप ॥
9
समझाते नासमझ को, रहे नासमझ आप ।
समझदार सा नासमझ, स्वयं दिखेगा आप ॥
10
जग जिसके अस्तित्व को, ‘है’ कह लेता मान ।
जो न मानता वह रहा, जग में प्रेत समान ॥
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