दरिद्रता Poverty

दरिद्रता Poverty


1
यदि पूछो दारिद्र्य सम, दुःखद कौन महान ।
तो दुःखद दारिद्र्य सम, दारिद्रता ही जान ॥


2
निर्धनता की पापिनी, यदि रहती है साथ ।
लोक तथा परलोक से, धोना होगा हाथ ॥


3
निर्धनता के नाम से, जो है आशा-पाश ।
कुलीनता, यश का करे,  एक साथ ही नाश ॥


4
निर्धनता पैदा करे, कुलीन में भी ढील ।
जिसके वश वह कह उठे, हीन वचन अश्लील ॥


5
निर्धनता के रूप में, जो है दुख का हाल ।
उसमें होती है उपज, कई तरह की साल ॥


6
यद्यपि अनुसंधान कर, कहे तत्व का अर्थ ।
फिर भी प्रवचन दिन का, हो जाता है व्यर्थ ॥


7
जिस दरिद्र का धर्म से, कुछ भी न अभिप्राय ।
जननी से भी अन्य सम, वह तो देखा जाय ॥


8
कंगाली जो कर चुकी, कल मेरा संहार ।
अयोगी क्या आज भी, करने उसी प्रकार ॥


9
अन्तराल में आग के, सोना भी है साध्य ।
आँख झपकना भी ज़रा, दारिद में नहिं साध्य ॥


 10
भोग्य-हीन रह, दिन का, लेना नहिं सन्यास ।
माँड-नमक का यम बने, करने हित है नाश ॥

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