विभेद Discrimination

1
सब जीवों में फूट ही, कहते हैं बुध लोग ।
अनमिल-भाव-अनर्थ का, पोषण करता रोग ॥


2
कोई अनमिल भाव से, कर्म करे यदि पोच ।
अहित न करना है भला, भेद-भाव को सोच ॥


3
रहता है दुःखद बड़ा, भेद-भाव का रोग ।
उसके वर्जन से मिले, अमर कीर्तिका भोग ॥


4
दुःखों में सबसे बड़ा, है विभेद का दुःख ।
जब होता है नष्ट वह, होता सुख ही सुक्ख ॥


5
उठते देख विभेद को, हट कर रहे समर्थ ।
उसपर कौन समर्थ जो, सोचे जय के अर्थ ॥


6
भेद-वृद्धि से मानता, मिलता है आनन्द ।
जीवन उसका चूक कर, होगा नष्ट तुरन्त ॥


7
करते जो दुर्बुद्धि हैं, भेद-भाव से प्रति ।
तत्व-दर्श उनको नहीं, जो देता है जीत ॥


8
हट कर रहना भेद से, देता है संपत्ति ।
उससे अड़ कर जीतना, लाता पास विपत्ति ॥


 9
भेद-भाव नहिं देखता, तो होती संपत्ति ।
अधिक देखना है उसे, पाना है आपत्ति ॥


10
होती हैं सब हानियाँ, भेद-भाव से प्राप्त ।
मैत्री से शुभ नीति का, उत्तम धन है प्राप्त ॥

Comments

Popular posts from this blog

अशक्य ही शक्य करतील स्वामी ।

पंचप्राण हे आतुर झाले, करण्या तव आरती

लागवडीचे अंतराप्रमाणे एकरी किती झाड बसतील ह्याचे गणित असे कराल!