याचना Supplication
याचना Supplication
1
याचन करने योग्य हों, तो माँगना ज़रूर ।
उनका गोपन-दोष हो, तेरा कुछ न कसूर ॥
2
यचित चीज़ें यदि मिलें, बिना दिये दुख-द्वन्द ।
याचन करना मनुज को, देता है आनन्द ॥
3
खुला हृदय रखते हुए, जो मानेंगे मान ।
उनके सम्मुख जा खड़े, याचन में भी शान ॥
4
जिन्हें स्वप्न में भी ‘नहीं’, कहने की नहिं बान ।
उनसे याचन भी रहा, देना ही सम जान ॥
5
सम्मुख होने मात्र से, बिना किये इनकार ।
दाता हैं जग में, तभी, याचन है स्वीकार ॥
6
उन्हें देख जिनको नहीं, ‘ना’, कह सहना कष्ट ।
दुःख सभी दारिद्र्य के, एक साथ हों नष्ट ॥
7
बिना किये अवहेलना, देते जन को देख ।
मन ही मन आनन्द से, रहा हर्ष-अतिरेक ॥
8
शीतल थलयुत विपुल जग, यदि हो याचक-हीन ।
कठपुथली सम वह रहे, चलती सूत्राधीन ॥
9
जब कि प्रतिग्रह चाहते, मिलें न याचक लोग ।
दाताओं को क्या मिले, यश पाने का योग ॥
10
याचक को तो चाहिये, ग्रहण करे अक्रोध ।
निज दरिद्रता-दुःख ही, करे उसे यह बोध ॥
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